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________________ मानव जीवन यानि परमात्मा-मिलन की यात्रा। मिलने निकले है, फिर स्थल और समय के बंधन कैसे? स्थल, काल और वस्तु (space, time and matter) के पर्दे जब हट जाते हैं, तब आत्मा से परमात्मा का मिलन होता है। भगवान से मिलन यानि अहंकार का गलन, प्रभु से निकट आत्मीय इस जगत में दूसरा कौन है ? जब दुनिया अपने आंसुओं पर हसेंगी, तब केवल अपने अंदर का भगवान ही, इस रूदन को समझेगा और हमें शांति प्रदान करेगा। जब अहंकार विलीन होता है, तब ही आत्मा में हम तल्लीन होते हैं, और तभी आत्मानंद प्राप्त होता है। अकबर ने एक बार हरिदास को अपने दरबार में बुलाया, हरिदास ने सुर छेडे, सर्वत्र आनंद छा गया, पर किसी की आँखो से आह्लाद के अश्रु नहीं निकले। अकबर ने कहा "उस दिन जंगल में मैंने आपको गाते देखा था, तब तो आपकी आँखो से प्यार भरी अश्रुधारा बह रही थी, आज ऐसा क्यों नहीं हुआ?' जवाब मिला, "उस दिन मैं अपने प्रभु को रिझा रहा था, वे अंतर विरह के आंसू थे, पर आज तो जगत और बादशाह को रिझा रहा हूं इसलिए केवल आनंद ही है। आत्मा के इस ज्ञान की भाषा मौन है। जीवन की आंतरिक गहराईओं को पहचानने के लिए गंभीरता चाहिए। अपने आप को बेचकर आज इन्सान हँसी शायद प्राप्त कर ले- पर कल रोना पडेगा, आसानी से आनंददायक वस्तुओं का मूल्य प्राय : आंसुओं से चुकाना पडता है। जीवन का महत्त्व लेने में नहीं, देने में (त्याग में) है। आत्मज्ञानी से अधिक धनवान कोई नहीं है, क्षुद्रता का त्याग यानि गंभीरता। आत्मप्राप्ति के लिए गंभीरता आवश्यक है, जो भौतिक सुखों के लिए बिकता नहीं, वही महान है। प्रलोभनों के सामने खड़े रहने की शक्ति उसमें आती है, और घर्षणों में से भी जीवन का नवनीत वही प्राप्त कर सकता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001809
Book TitleDharma Jivan ka Utkarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChitrabhanu
PublisherDivine Knowledge Society
Publication Year2007
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size11 MB
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