SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 42
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गंभीरता द्वारा आत्म दर्शन धर्मप्राप्ति के अधिकारी बनने के लिए, व्यक्ति में कैसे सद्गुण होने चाहिए? हम इसकी चर्चा कर रहे हैं। धर्म बडी ऊँची वस्तु है, यदि यह गुणविहीन व्यक्ति के पास चली जाए तो वह जगत को ठगने का काम करता है। अपनी कमजोरियां छुपाने के लिए वह धर्म का लिबास पहनकर धार्मिकता का दंभ भरता है, किन्तु उसकी अन्तरधारा एकदम अधार्मिक है। बाह्य रूप से वह धार्मिक होने का केवल ढोंग करता है। स्वर्ण की परख के लिए उसे कसौटी पर घिसना जरूरी है, यदि कोई व्यक्ति अपने सोने को कसौटी पर घिसने की मनाई करता है, तो समझना चाहिए शायद उसका सोना अशुद्ध होगा। वैसे ही बाहर से धर्मी दिखने वाला कितना सच्चा धर्मी है, उसकी भी कभी कभी कसौटी करनी पड़ती है। धर्म पालन से इन्सान देवता बन सकता है, धर्म से पशुता दूर होती है, दिव्यता प्रगट होती है, पर धर्म जीवन में व्यापक बनना चाहिए, तभी यह संभव है। क्रोध, लोभ बगैरह के रंग और उनसे होने वाले असर का नाम भगवती सूत्र में लेश्या दिया गया है। आधुनिक समय में बिशप लेड़बीटर नामक अभ्यासीने इस बात को चित्रों द्वारा बताया है। मन में लोभ के विचार आते ही ऊंगलियां मुर्दे की भांति झुड़ जाती है। इन लेश्याओं का वैज्ञानिक दृष्टि से अभ्यास करना चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001809
Book TitleDharma Jivan ka Utkarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChitrabhanu
PublisherDivine Knowledge Society
Publication Year2007
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy