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गंभीरता
धर्मरूपी रत्न की प्राप्ति की इच्छा रखने वाले को अपनी वृत्ति के साथ साथ शक्ति तथा योग्यता का भी विचार करना चाहिए। जिसके पास सद्गुणों का खजाना नहीं है, वह यदि अध्यात्म जीवन की बातें करें, तो वह आत्मवंचना है, तथा समाज को ठगता है।
धार्मिक व्यक्ति के जीवन में २१ गुण होने आवश्यक हैं। ज्यादातर लोग तो कल्पना में ही विचरते हैं, वास्तविकता में वे शून्य होते हैं, ऐसे वेशधारी लोग जीवन के उच्च स्तर को नीचे गिरा रहे हैं।
धर्म पालने वाले के जीवन में सर्वप्रथम गंभीरता होनी चाहिए, ओछे स्वभाव वाला धर्म पारायण नहीं हो सकता। बातों को, रहस्यों को पचाने की शक्ति होनी चाहिए, सत्य का प्रतिपादन भी सोच समझकर, विवेकरूपी छलनी से छानकर करना चाहिए।
कितने ही लोग अपने आप को शंकर के भक्त कहते हैं, परंतु वे शंकर के गुणों को पता नहीं जानते हैं, या नहीं? जो दूसरों का शम (भला) करे वह शंकर। जो जहर पचा सकता है, वही शंकर का सच्चा भक्त बन सकता है, क्यों कि शंकर ने भी स्वयं जहर पीकर दूसरों को अमृत प्रदान किया था। भक्त कहलाने से पहले ईष्ट के गुणों को जीवन में व्यवहार में उतारने की कोशिश करनी चाहिए।
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