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कसीदाकारी की हुई शॉल दी। गाँव में एक आदमी के पुत्र की शादी का जलूस निकलने वाला था, उस आदमी ने नाई से वह शॉल मांगी ओर दुल्हे को ओढाई । नाई को कहा गया, वह किसी को नहीं बताए, मगर नाई के पेट में भला कोई बात टिक सकती है ? उसने सबसे कह दिया “दुल्हे की शॉल मेरी है ।" हालांकि शाल बहुत सुंदर थी, तारीफ के काबिल थी, पर इससे क्या दुल्हे के बाप की ईज्जत बढी या कम हुई ?
अपने जीवन में भी अधिकतर वस्तुएँ किराये की हैं, एक दिन इन्हें छोड़कर हमें जाना है, इनसे आत्मगौरव कैसे बढ सकता है ? स्वस्थ मन से अंत:करण की गहराईयों में डूब कर चिंतन किया जाए तभी जीवन की गूढता का दर्शन हो सकता है । अपनी सच्ची आत्मिक संपत्ति से ही शांति प्राप्त हो सकती है।
हीरे का प्रकाश उसके सभी पासों में रहता है, ऐसे ही एक महान शक्ति हमारी आत्मा में छुपी हुई है। सत्य, अहिंसा आदि का अंतर - प्रकाश, बाहर की चकाचौंध से ज्यादा प्रभावी है । हमारा कार्य है इस महान शक्ति को प्राप्त करना। सामान्य मानव इन्द्रियों का दास बनकर जीता है, महापुरुष इन्द्रियों को दास बनाते हैं । यदि हम प्रयत्न करें तो, हमारे अंदर भी धीरे धीरे यह शक्ति प्रकट हो सकती है। जंग वाले बर्तन का जंग दूर करने के लिए उसे घिसना पड़ता है, मन को स्वच्छ रखने के लिए मार्जन करना पडता है।
व्यक्ति जन्म से महान नहीं, अपने पुरूषार्थ से महान बनता है, आंतरिक प्रकाश को बाहर लाने का प्रयास हमें करना है ।
जैसा संग वैसा रंग, इन्सान आदतों का गुलाम है, अब आत्मा की अनंत शक्ति को प्राप्त करने, और ज्ञान प्रकाश बाहर लाने के लिए हमें भी आदत डालनी होगी, यानी कि हमें हाथ धोकर पीछे पड जाना चाहिए कि हम अपनी आत्मा के सौंदर्य को कैसे प्राप्त करें ?
यह बात हमारे मन में स्पष्ट हो जानी चाहिए कि देह से आत्मा भिन्न है। आत्मा अनंत शक्ति की धनी है, कोई योग्य निमित्त पाकर आंतरिक
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