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________________ १६० "मेरा निर्णय है, मेरा यह संकल्प है कि आपकी सेवा करूं, मुझे स्वीकार कीजिए, मैं यह ढाल, तलवार लेकर आपका रक्षक बनकर खडा रहूंगा।" भगवान ने कहा, “तलवार और ढाल क्या रक्षा करेंगे? सच्ची रक्षा तो दया और अहिंसा करेंगे।' फूलशाल में विनय के साथ सन्मान भाव भी था, विनय बाह्य भाव है, सन्मान अंतर का भाव है। आज्ञा पालन आगे बढ़ने का, भव सागर तिरने का मार्ग है। विनयके साथ सन्मान भाव आवश्यक है, इनके साथ ही आज्ञापालन का गुण, ये तीनों जरूरी हैं। ऐसा विनयवंत आत्मा ही गुणवान आत्मा को देखकर नाच उठती है, जैसे मेघ को देखकर मोर नाचता है। फूलशाल की विनय भावना में भगवान के लिए जो सन्मान था, वह अमृत बन गया। फूलशाल ने उसी समय भगवान की बात सुनकर ढाल, तलवार रखकर ऋजोहरण ग्रहण किया और मुनि बन गये। फूलशाल के जीवन से हमें यह सीख मिलती है कि हमारे से जो उम्र में, गुण में, तप में, आराधना में, ज्ञान में जो महान है, उन्हें सन्मान देना चाहिए। हम जो देंगे, वही हमें वापस मिलेगा। बड़ा तो वह कहलाता है जो छोटो को भी सम्मान दे। . व्यक्ति के बोलने से उसका अंतःकरण दिख जाता है, एक व्यक्ति अंधे को अंधा कहता है, दूसरा प्रज्ञाचक्षु कहता है, बात एक ही है, परंतु दूसरा शब्द कितना सुंदर है? हम भाषा समिति की बात करते हैं, भाषा समिति यानि क्या? शब्दों को तोलमोलकर व्यवस्थित ढंग से बोलना। शब्दों से ही हमारी लायकात, योग्यता जानी जाती है। फूलशाल की कथा से हमने यह जाना, कि विनय गुण मोक्ष का द्वार है। विनय से ज्ञान, ज्ञान से दर्शन, दर्शन से चारित्र और चारित्र से मोक्ष प्राप्त होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001809
Book TitleDharma Jivan ka Utkarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChitrabhanu
PublisherDivine Knowledge Society
Publication Year2007
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size11 MB
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