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धन के लिए पिता के पीछे घूमने वाले मतलबी पुत्रों की कमी नहीं है, दुनिया में।
सच्चा पुत्र तो वही है, जो माँ-बाप के पास कुछ भी न हों तो भी यह समझे कि उनके उस पर अनन्त उपकार हैं। माँ-बाप की अंतिम इच्छाऐं पूरी करे, समाधि मरण में निमित्त बने ।
हमने देखा कि जिनमें ये छ: विशेषण हों, वे ही वृद्ध समझे जाते हैं। ऐसे वृद्ध जो पापाचार की प्रवृत्ति न करे, जीवन का श्रेष्ठ अनुभव हों, ज्ञान, तप से भरा जीवन हों, ऐसे वृद्ध समाज के नेता हों तो समाज का कल्याण हो सकता है ।
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