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________________ ४२ सब धर्मों का मूल दया है, तो सब गुणों का मूल विनय है । विनय है तो दूसरे गुण स्वत: आएंगे, विनम्रता विहीन, किए, कराए सभी कार्यों पर पानी फिर जाता है । इसीलिए हम बच्चों को सबसे पहले विनय सीखाते हैं। विनय यानि सीधा पात्र, अविनय यानि उल्टा पात्र, सीधे पात्र में ही वस्तु ग्रहण की जा सकती है, उल्टे में नहीं । जिनमें गुरूजनों गुणीजनों के प्रति पूज्यभाव नहीं वो उनके पास से क्या सीख सकते हैं ? विनय जो विनयशील हैं, वह सहर्ष स्वीकार करेगा कुछ दो तो, जब कि अविनयी ग्रहण किया हुआ भी नीचे गिरा देगा, यानि ग्रहण नहीं करेगा । रेत में घी, गुड डालकर लड्डु नहीं बनाए जा सकते, लड्डु तो आटे में घी, गुड डालकर ही बनते हैं। अविनय हों तो रेत, गुड के लड्डु जैसी हालत होती है । अपनी वाणी और क्रिया में विनय अत्यावश्यक है, यदि हमारे में यह गुण होगा तो हमारे बालक भी सीखेंगे । Jain Education International एक औरत अपनी सास को मिट्टी के टूटे हुए बर्तन में खाना देती थी । उसके बेटे की शादी हुई, बहु आई, उसने देखा कि सास क्या करती है ? उसने उन बर्तनों को रोज साफ करके इकट्ठा करना शुरू किया, उपर कोठे में उन टूटे हुए बर्तनों का ढेर लगा था। सासने बहु से पूछा, " अपने घर में इतने सुंदर बर्तन हैं इन टूटे-फूटे मिट्टी के बर्तनों का ढेर क्यों लगाया है ?" १५६ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001809
Book TitleDharma Jivan ka Utkarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChitrabhanu
PublisherDivine Knowledge Society
Publication Year2007
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size11 MB
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