________________
१३६
का रसपान कर रहे थे । यदि खडे खडे ऊपर दृष्टि डालकर देखते तो गर्दन अकड़ जाती, इसलिए उन्होंने यह तरकीब आजमाई। उस समय मेरे मन में यह ख्याल आया, कि वस्तुपाल कैसा होंशियार है, कि उसने अंग्रेजो को भी कला के सम्मान हेतु लंबा होने पर मजबूर कर दिया। यही कारण है कि वह पुत्र बिना का होकर भी पोषक पिता बना, आज सदियां बीत जाने के बाद भी, हम उनकी संतान बनने का गौरव लेकर उन्हें याद करते हैं ।
सुपक्षता के बाद हम अब पंदरहवें सोपान 'दीर्घदर्शिता' पर आए हैं। जो काम अच्छा नहीं, उसका परिणाम अच्छा नहीं, जो काम अच्छा है, उसका परिणाम भी अच्छा आएगा । दीर्घ दृष्टि अपनाकर इन्सान दूर की सोचकर, परिणाम का विचार कर, काम करेगा, साथ ही साथ परिणाम में अनासक्ति का ही भाव रखेगा ।
“कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन" यह सापेक्ष वाक्य है। काम करो मगर, फल की इच्छा मत करो। आज तो काम से पहले लोगों को परिणाम चाहिए, स्वार्थी होकर जो आना पाई का हिसाब गिनता है, वह अच्छा काम नहीं कर सकता । इन्सान का धर्म है अच्छा काम, सोच विचार कर करना, उसमें भी दीर्घ दृष्टि तथा उदार दिल रखना चाहिए, क्यों कि परिणाम कुछ भी आ सकता है। इन दोनों गुणों का संकलन हों, तब काम सार्थक बनता है।
पचहत्तर वर्ष के एक बूढे को आम का पेड़ लगाते हुए देखकर किसी ने पूछा, “तुम तो बूढे हो गये हो, अब यह आम का पेड़ कब उगेगा, और तुम आम कब खाओगे ? " तब उसने जैसे श्रम का गीत गाते हुए कहा
"बीते हुए कल ने मुझे आज यह दिया है, तो मैं भी कुछ कल के लिए देना जाऊं।" सच तो यह है कि जब से तुमने आम बोया, तबसे ही सूक्ष्म फल मिलन की शुरूआत तो हो ही गई है, क्यों कि उसमें दूसरों को छाया मिले, फल मिले ऐसा शुभ हेतु निहित है । वृद्धने अपना कृतज्ञता का ति रखने के लिए, यह कार्य दीर्घदर्शिता पूर्वक किया। कहा गया
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org