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________________ १३७ है कि 'बहु लाभ अने अल्प क्लेश' काम ऐसा करो जिसमें लाभ अधिक हों, क्लेश कम हों । श्रम का संबंध देह से है, क्लेश का संबंध मन से है । लाभ अधिक लेना, काम कम करना, यह आदमी को कामचोर बनाता है, यह एक प्रकार की चोरी है। यहां अल्प क्लेश यानि अल्प श्रम नहीं श्रम तो करना ही चाहिए। साधक के लिए क्षमा-श्रमण नामक ये दो शब्द प्रयोग किए गये हैं। आत्मा की शुद्धि के लिए, मन की मुक्ति के लिए, प्रेम से जो सहन करे, वह क्षमा श्रमण कहलाते हैं । क्षमा श्रमण पना अपने में होना अनिवार्य है, श्रम के बिना जीवन में मिठास नहीं रहती। रसोईये की रसोई और औरत के हाथ का खाना, दोनों में फर्क यही है कि, पत्नी हाथ से बनाए हुए खाने में प्रेम की उर्मियां भी मिश्रित होती है । अतः खाना स्वादिष्ट लगता है । परिश्रम करके बनाए हुए खाने में, भूख भी बराबर लगती है। ऐसा ही पैसे के लिए समझना चाहिए, प्रस्वेद गिरा कर कमाया हुआ धन, सच्चा धन होता है। वह फालतू खर्च नहीं करेगा। जिसका पेट भरा हों उसे भूख का ख्याल नहीं आ सकता, वह भाषण, कथन कर सकता है, अनुभूति नहीं कर सकता । गरीबी मन की वस्तु है, निर्धनता दुनिया की वस्तु है । जिसमें नैतिक हिम्मत नहीं, वह मन का गरीब है, अत: निर्धनता भले आए, परंतु मन की गरीबी नहीं आनी चाहिए। इसलिए जगत में धन के साधन होने के बावजूद भी ऊंचे स्थान पर आरूढ होने वाले बहुत कम लोग हैं। "संतोष थी जीवन गुजरे, ऐटलुं तुं मने आपजे, घर घर गरीबी छे छतां, दिलमां अमीरी राखजे ।" आदमी यदि मे जगीर है तो कम साधन मिलने पर भी, मन से उन्नत रह सकता है । एक भिखारी था, दिन भर भीख मांग कर खाता था। उसे दूसरा भिखारी मिला, वह अधिक गरीब था, वह पहले भिखारी जैसा भीख मांगने में कुशल नहीं था। दूसरे का दुख देखकर, पहले भिखारीने अपने सारे पैसे उसे दे दिए, उसने देखा कि उसे पैसे की जरूरत अधिक थी। हालांकि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001809
Book TitleDharma Jivan ka Utkarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChitrabhanu
PublisherDivine Knowledge Society
Publication Year2007
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size11 MB
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