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दीर्घ दर्शिता
धर्म रत्न के इन सद्गुणों को सोपान कहना ज्यादा उचित है, क्यों कि गुण व्यक्ति को आगे बढ़ाता है और सोपान उपर ले जाता है। हमने ऐसे चौदह सोपानो पर पूर्व में विचार कर लिया है।
कल हमने सुपक्ष पर विचार किया था, इस शब्द में कैसी कविता है? पक्ष यानि कुटुम्ब और पक्ष यानि पंख। मोर के पंख होते हैं, यदि वे कट जाएं, पीछे बिखर जाएं तो मोर की सुंदरता नष्ट हो जाएगी, वह नृत्य नहीं कर सकेगा, प्रसन्नता नहीं प्रगट कर सकेगा। उसका सारा सौन्दर्य तिरोहित हो जाएगा। वैसे ही हमारे आसपास के स्वजन अच्छे होंगे तो ही हम सुंदर लगेंगे।
पुत्र भला हों तो, उससे उसके माँ-बाप पहचाने जाते हैं। देवता का पुत्र यदि राक्षस जैसा हों तो पिता की इज्जत मिट्टी में मिला देगा। इसीलिए कहा है कि कुपुत्र का पिता होने से तो नि:संतान रहना अच्छा है। वस्तुपाल, बिना पुत्र के बाप थे, फिर भी समाज के पिता बन गये। आबू देलवाडा के भव्य जिनालयों का निर्माण करवा कर अमर बन गये।
जिसमें पोषक तत्त्व हों, वह सच्चा पिता। जरा वस्तुपाल के जीवन पर नजर डालिए। उनके द्वारा सर्जित देलवाड़ा के मंदिर ने गौरव दिया, संस्कृति का पोषण किया। थोड़े समय पहले, एक अंग्रेज दंपत्ति, वहां पर छत की सुंदर कारीगरी देखने आए, वो सोकर ऊपर नजर रखते हुए, इस सुंदर कलाकृति
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