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________________ ३० माध्यस्थ भाव का माधुर्य माध्यस्थ, एवं सौम्य बुद्धि वाले का स्वभाव जड़ नहीं होता, राग, द्वेष की तीव्रता नहीं होती, सरलता से वस्तु के भावों को ग्रहण कर लेता है। जिसमें ऐसी दृष्टि नहीं वह अपनी गलत बात को मनवाने का आग्रही होता है, स्वयं को सच्चा तथा धार्मिक मानता है। ___परंतु ऐसा इन्सान भूल रहा है, कि किसी वस्तु को आकार देना हों तो उसे नर्म बनाकर सांचे में ढालना पड़ता है। आर्द्र, नरम, कोमल वस्तु ही योग्य आकार ग्रहण कर सकती है, सूखी और कठोर तो टूट जाएगी। जिसके जीवन में माध्यस्थ भाव नहीं, वह व्यक्ति मिथ्याभाव में से बाहर ही नहीं निकल पाएगा। वह एक ही पहलू को पकड़ कर बैठ जाता है दूसरों की बात सुनने को तैयार ही नहीं होता, और अंत में सत्य से वंचित रहकर जिंदगी बिताता है। बात बात पर उग्र होने वाला, जरा सा निमित्त पाकर आवेश में आने वाला व्यक्ति सौम्यता गुण से रहित है। कुत्ता भी निमित्त पाकर या अन्जान को देखकर ही भौंकता है, बिना निमित्त शांत रहता है। वैसे ही इन्सान भी बिना निमित्त शांत रहकर “मैं गुस्सा नहीं करता'' ऐसा आडंबर करता है, फिर उसमें और कुत्ते में फर्क ही क्या है? सामने वाले को क्रोध करने पर भी यदि तुम शांत रहोगे, तो तुम्हारा काम बन जाएगा, जैसे गर्म लोहे को ठोकते समय हथौड़ा ठंडा ही रहता है। यदि वह गर्म हो जाए तो प्रथम तो हाथों को ही जला डालेगा। और यदि ११३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001809
Book TitleDharma Jivan ka Utkarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChitrabhanu
PublisherDivine Knowledge Society
Publication Year2007
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size11 MB
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