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- किसी चीज की इच्छा करें, और प्राप्त न हों तो दुख होता है, इस तरह हम स्वयं इच्छा को बुलाते हैं, फिर उसका भाई, दुःख पीछे पीछे आता है। इससे अच्छा लोग दें, और हम न लें, तो ऐसी निस्पृहता से लोकप्रियता बढ़ती है, और इच्छा विजय का आनंद भी प्राप्त होता है।
गुरु का तीसरा संदेश था, “सुखे सुवू' इसका अर्थ है, आत्मा में विचरना और मन में आने वाले विचारों को रोकना। जब शरीर थके, तभी शरीर को सोने देना, ऐसा इन्सान सोता है, पर उठने पर स्वस्थ हो जाता है। उसे नींद में स्वप्न बेचैनी आदि नहीं होते। सुख से सोना, यानि आत्मलीनता में मग्न, भय रहित होना ताकि आराम से सो सके। जिसका मन अभय है, वह जमीन पर भी आराम से सो सकता है।
फुटपाथ पर सोने वाला गहरी नींद में सोता है, एक धनवान को ऐसी नींद नहीं आती, कारण? एक मन भयमुक्त तथा श्रम का साधक है, जब कि, दुसरे का मन भययुक्त तथा श्रमरहित है।
इन तीनों उपदेश का अर्थ, प्रज्ञ शिष्य तो समझ गया, क्यों कि वह माध्यस्थ भाव वाला, सौम्य दृष्टि वाला, तथा पूर्वाग्रह रहित था। उसकी दृष्टि द्वेष रहित थी, इसलिए उसने दूसरे शिष्य के साथ झगड़ा नहीं किया, बल्कि उस पर दया उमड़ी। इसलिए दूसरे शिष्यने भी उसके विचारों को स्वीकार किया।
___हमें भी शब्दों की पकड़ न करके उस में से हित भावार्थ को समझना चाहिए “गंगा मां झूपडूं" कहते हैं, इसका अर्थ गंगा के पानी बीच झोंपडा नहीं, अपितु गंगा के किनारे झोंपडा। धर्म दर्शन के सच्चे स्वरूप को समझने के लिए बुद्धि में सौम्यता तथा माध्यस्थ भाव होना चाहिए।
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