________________
१११ उसने एक के दो रोग कर दिए। दूसरे डॉक्टर को बुलाया, उसने एक रोग
और बढा दिया। फिर तीसरे डॉक्टर को बुलाया वह गाँव में नहीं था, एक सप्ताह बाद आया, तब तक तो मेरे सारे रोग मिट चुके थे।" आज के रोगों के लिए, क्या यह बात सच नहीं है? कितने ही रोग क्या डॉक्टरों से नहीं बढ़े? कुछ रोग घटे भी होंगे, पर बढ़े कितने?
हमारे रोगों का एक कारण- भोजन अधिक खाना तो है ही, साथ ही चटपटा, मसालेदार, तीखे व्यंजन खाना भी है। सच तो यह है कि क्षुधा लगने पर सादा भोजन भी मीठा लगता है।
गुरु का दूसरा उपदेश था- लोकप्रियता यानि निःस्पृहृता, जिसे दुनिया से कुछ लेने की इच्छा ही नहीं, वह अवश्य लोकप्रिय बनता है। ऐसी लोकप्रियता भाषणों से, मीठी बातें करने से नहीं मिलती, ना ही मंत्रतंत्र करने से मिलती है। यह तो निस्पृहि लोगों को ही मिलती है। जिन्हें हमेशां दूसरों से कुछ लेने की ही अपेक्षा रहती है, वे तो छिपकली जैसे हैं, जो सदा लेने का ही विचार करती है।
जहाँ तक संभव हो हमें हमेशां अपने काम स्वयं करने चाहिए। किसी से अपेक्षा नहीं रखेंगे तो लोग स्वयं सहायता करने आएंगे, इसी का नाम लोकप्रियता है। निःस्पृहता के लिए कहा है कि
"सहज मिले सो दूध बराबर, मांगे मिले सो पानी,
कहत कबीर वह रक्त बराबर, जिसमें खिंचातानी।" __सहज ही जो कुछ मिले, वही कीमती है, मांगने से अपना पानी उतर जाता है। हमें कम से कम वस्तुओं से अपना काम चलाना सीखना चाहिए। संपत्ति के दास बनने की बजाय दिल की संपत्ति के वैभव का अनुभव करना चाहिए, इसी से सच्चा गौरव आता है। रोटी, कपड़ा और मकान इत्यादि जीवन के लिए आवश्यक वस्तुएं हैं। किन्तु बहुत परिग्रह जीवन में अधोगति का सूचक है, क्यों कि फिर उनकी सुरक्षा के लिए हमारे जीवन में बंधन आता है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org