________________
१०४ करने वाले लोग कितने हैं? दूसरों का सहायक बनना है और हमारे भीतर सम्यग् दर्शन, पवित्र भाव न जगें तब तक जो बाह्य दया है, वह भाव दया नहीं बन सकती।
हमने दया के दो पहलू - द्रव्य दया, और भाव दया पर विचार किया, परंतु हम अपने पर भी दया करते हैं कि, “मैं आज का करोडपति, कल कहीं भी फेंका जा सकता हूं।" आदमी के अंदर स्वदया और भाव दया दोनो हों तो ही वह धर्म का सच्चा अधिकारी है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org