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विश्व एकता का भाव
हमने दया के दो पहलू स्वदया और परदया पर प्रकाश डाला, एक और दया संबंधी विचार पर चर्चा करेंगे, हम बोलते हैं- "दया धर्म का मूल है।' इसका अर्थ क्या है? अनेक धर्मों में कुछ न कुछ सिद्धांतो में, भेद दिखाई देता है, परंतु दया धर्म को सभी धर्म मानते हैं।
__ प्रत्येक जीव दया से जीना चाहता है, मृत्यु परेशानी, क्रूरता किसी को भी पसंद नहीं, ऐसे ही जगत को भी यह सब पसंद नहीं। माला में मोती अलग होते हैं, पर धागा एक ही होता है, पिरोने के लिए। वैसे ही सब धर्मों में दया रूपी धागा समान ही है।
विश्व एकता की भावना में दया की दृष्टि मुख्य है, एक मंत्र में हम सुनते हैं, “आत्मवत् सर्व भूतेषु, सुखदुःखे प्रियाप्रिये।" दूसरों के दुखों का प्रतिबिम्ब हमारे हृदय में पड़ता है, तब इन विचारों का उद्गम होता है कि, जो मुझे पसंद नहीं, वह दूसरों को भी पसंद नहीं, जो मुझे प्रिय है, वही दूसरों को भी प्रिय है। ऐसे विचारों से ही विश्व एकता की भावना प्रगट होगी। स्वदया और पर दया ही विश्व एकता की जन्मदात्री है, विश्व और जिंदगी का संवाद इसी से जागृत होता है। सब जगह शुभ भावना रखते रखते हम दृष्टा बन सकते हैं, परंतु यह दर्शन केवल आँखो से नहीं आत्मा से होना चाहिए। हमें तो विश्व में संवेदना जगानी है, जैसे सितार के एक तार को स्पर्श
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