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________________ १०२ चूकने का मोका ज्यादा होता है। पैसे, प्रतिष्ठा बढने पर जी हजूरिए, हाँजी! हाँजी! करते हैं, कोई दोष निर्देश नहीं करते। किसी शायर ने कहा है - “एक गलत कदम पडा था राहे शौक में, जिन्दगी तमाम उम्र मुझे ढूंढती रही।" दुःख इन्सान को स्वर्ग तक ले जाता है, क्या आप जानते हैं ? देवलोक में ज्यादातर जीव कहाँ से आते हैं? पशुओं में से। बैलगाडी खेचनेवाला बैल मार खाते खाते, भूख, प्यास, सर्दी, गर्मी सहन करते, करते अकाम निर्जरा करके, देव बन जाता है। और इन्सान पुण्य भोगकर नीचे की गतियों में चला जाता है। भले हम देव न बनें, पर इन्सान तो बन ही सकते हैं, खीर-पूरी न मिले तो कोई बात नहीं, यदि खिचड़ी मिली है तो उसे क्यों खोते हों? जिसमें क्रोध, मान, माया, लोभ आदि मन्द पड़ गये हों वह, तथा दान की प्रवृत्ति वाला, फिर से मानव भव प्राप्त कर सकता है। पत्नी जैसे पति की राह देखती है, वैसे ही भक्त का हृदय दान देने के अवसर ढूंढता है। भगवान आए या न आए, भक्त को प्रतीक्षा करनी पडती है, जैसे जीरण शेठ को प्रभु महावीर को अपने घर बुलाकर पारणा कराने की तीव्र इच्छा जगी थी। रोज विनती करते हैं। मन, भावना के प्रेम रंग से रंग चुका है, हालां कि पारणा तो सुदर्शन शेठ के हाथों होता है, परंतु भावना की ऐसी उच्च श्रेणी पर आरूढ़ हो गये कि उनकी आत्मा बारहवें देव लोक तक पहुंच गई। धर्म कोई बाहर की वस्तु नहीं है, इसका संबंध भावों से हैं। “दान विना देव मले नहीं" इसमें दान तो गौण है, भाव की मुख्यता है, दान तो अंतर का उल्लास है। हमारे हृदय में राग ने घर कर लिया है। सगे-सम्बन्धी, नाते-रिश्तेदार आते है- तो लेने या छोडने जाना पड़ता है, परंतु साधर्मिक के लिए इतना कौन करता है? यश, प्रतिष्ठा की इच्छा बिना उल्लासपूर्वक दिया हुआ दान फलित होकर मनुष्य को दूसरे जन्म में भी मनुष्य बनाता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001809
Book TitleDharma Jivan ka Utkarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChitrabhanu
PublisherDivine Knowledge Society
Publication Year2007
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size11 MB
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