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________________ १०० जाता। एक दिन उसकी डबल रोटी पर मुरब्बे में एक बड़ा कीड़ा था, उसे देखकर उनकी पोती, जो आठ वर्ष की थी, उन्हें कहने गई, पर उन्होंने उसे डाँटकर चुप कर दिया। बाद में दादा ने पूछा “तुम बीच में क्यों बोल रही थी।'' उसने कहा “आपकी रोटी पर कीड़ा था, आपने खा लिया।" दादा पछताये, अपनी भूल समझ में आई। जीवन के सभी काम ध्यानपूर्वक (उपयोग पूर्वक) करने चाहिए, ध्यानशन्यता कभी हैरान कर सकती है। जो व्यक्ति ध्यानपूर्वक, दयापूर्वक जीता है, उसे पश्चाताप करने का वक्त कम ही आता है। एक शेठ थे, निःसंतान थे। चाह प्रबल थी। किसी ने कहा “एक बकरे की बलि, देवी को चढ़ाओ, पुत्र जन्म होगा।" शेठने कहा, “में ऐसा नहीं कर सकता।" उस आदमी ने कहा, "मुझे ५०० रूपये दो, मैं यह काम कर दूंगा।" संसार की आसक्ति कैसी है? शेठ ने ऐसा किया। दैव योग से पुत्र जन्म हुआ। पुत्र एक वर्ष का हुआ, शेठ गुजर गये, मरकर बकरे बने। लडके ने हर वर्ष बकरे की बलि देने का क्रम चालू रखा। एक बकरा मंगवाया, जैसे ही वह दुकान के पास आया, उसे जातिस्मरण ज्ञान हुआ “यह मेरी दुकान, यह मेरा बेटा।" बकरा वहाँ खड़ा रह गया। इतनी देर में एक साधु आए, उन्होंने बकरे से कहा “पुत्र के लिए तुमने बकरे की बलि दी, तो आज तुझे बकरा बनकर मरने का समय आया है। आसक्ति के समय ध्यान नहीं रखा अब क्यों खींचतान कर रहे हो?" फिर तो साधु ने उसके पुत्र को सारी बात समझाई, बकरे को बचाया। इसीलिए कहा है कि आत्मा की अधोगति करने वाला एक भी काम नहीं करना चाहिए। धार्मिक व्यक्ति को सच्चरित्र एवं दयालु होना चाहिए, मनसा, वाचा, कर्मणा अहिंसक भाववाही बनकर जीवन जीने का प्रयत्न करना चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001809
Book TitleDharma Jivan ka Utkarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChitrabhanu
PublisherDivine Knowledge Society
Publication Year2007
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size11 MB
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