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मेघाणी ने कहा कि, “यह व्यक्ति बडे थे परंतु उनका चबूतरा छोटा था। इसलिए राह चलता कोई वृद्ध भी बिना काम उनके पास जाकर शिकायत कर सकता था। यह नगरशेठ सबकी सुनते थे, इनके द्वार सबके लिए खुले थे।" दरवाजे बंद करके बैठने वालों के पास कौन जाएगा। व्यक्ति जैसे जैसे बडा होता है। उसमें गुणों की भी वृद्धि होनी चाहिए, छोटे लोगों के साथ संबंध बढ़ना चाहिए। उनके दु:ख सुनकर सहानुभूति दिखानी चाहिए, कुटुंब में एक व्यक्ति भी ऐसा हों तो दूसरों में भी धीरे-धीरे ये सद्गुण विकसित हो जाएंगे।
“महाजनो येन गतः स : पन्थाः " घर के बुजुर्गों को पहले अपना जीवन दाक्षिण्य गुण सम्पन्न, पवित्र, परोपकारी बनाना चाहिए, फिर छोटे भी उनका अनुकरण करेंगे। ऐसे भाववाले व्यक्ति अपने तथा दूसरों के लाभ का विचार करके प्राथमिकता के आधार पर कार्यों को अंजाम देते हैं। यदि दूसरों का काम ज्यादा जरूरी है तो वो पहले करते हैं। ऐसा व्यक्ति सभी का मददगार हो सकता है। कुछ लोग तो "समय नहीं है" कहकर अपना बचाव करते हैं। सच्चा उद्यमी व्यक्ति समय में से समय निकालकर परोपकार करता है। भगवान महावीरने पच्चीस सौ वर्ष पहले कहा था कि "हे गौतम एक पल का भी प्रमाद मत कर।" प्रमाद तो दीमक की भांति सद्गुणों का नाश कर देता है।
बहुत से लोग सुबह जागने के बाद भी बिस्तर में तंद्रा, आलस्य में पड़े रहते हैं, व्यर्थ के विचारों में कई घंटे बरबाद करते हैं। ऐसे लोगों को व्यर्थ समय गंवाना ही नहीं चाहिए। आँख खुलते ही बिस्तर से उठकर परमात्मा . का नाम लेना चाहिए, सुंदर विचारों द्वारा काम में लगना चाहिए, काम करने से किसी की आत्मा थकती नहीं और न ही कोई बूढ़ा होता है। काम से तो व्यक्ति तंदुरस्त रहता है।
धर्म इन्सान को कभी निर्माल्य नहीं बनाता। धर्म का काम तो “मृत्यु मेरा विश्राम है, मित्र है" इसका बोध कराकर आगे बढ़ाना है। धार्मिक को मृत्यु का भय कभी नहीं सताता, वह जानता है कि अखंड जीवन यात्रा में,
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