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________________ सुदाक्षिण्य आठवाँ गुण सुदाक्षिण्यता गुण, जो हमें शुभकार्य करने की प्रेरणा देता है। जीवन में यदि यह गुण न हों तो इन्सान स्वार्थी बन जाता है, स्वार्थ में पागल होकर, वह कुत्ते की भांति, रोटी के लोभ में लकडी की मार भी खा लेता है। पर मनुष्यता पाने के लिए तो परमार्थ के तत्त्व को अपने भीतर विकसित करना होगा। सुदाक्षिण्यता गुण वाले आदमी के पास कोई दुःखी आए तो वह मदद जरूर करता है, ऐसे व्यक्ति के पास लोग अपना हृदय खोल सकते हैं, दुःख हल्का कर सकते हैं, ऐसे लोग आज कम दिखाई देते हैं। हमें यह कमी पूरी करनी है। शहरी लोगों के जीवन में स्वार्थ विशेष रूप से दिखाई देता है, उनका हर कदम गणनापूर्वक होता है। झोंपडे से महल बन जाए तो भी स्वार्थ वृत्ति बनी ही रहती है। जब तक इन्सान केवल अपना ही विचार करेगा मानवता कहाँ खिलेगी। यदि जीवन को हराभरा रखना है तो हृदय में सुदाक्षिण्यता की आर्द्रता होनी जरूरी है। ऐसे गुणधारक व्यक्ति का हृदय स्नेहमय होता है, वह दूसरों के दुःख दूर करने के लिए सदा तत्त्पर रहता है। ऐसे लोग गाँवो में थोडे जरूर मिल सकते है, शहरों में तो दूसरों की बात सुनने की फुर्सत ही कहाँ ? फिर सहायक बनना तो दूर की बात है। एक शहर के नगरशेठ गुजर गये, तब उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए कवि ८० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001809
Book TitleDharma Jivan ka Utkarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChitrabhanu
PublisherDivine Knowledge Society
Publication Year2007
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size11 MB
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