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________________ तृतीय अध्याय [ ४७ तृतीय अध्याय अधोलोकका वर्णन सात पृथिवियां-नरकरत्नशर्कराबालुकापङ्कधूमतमोमहातमःप्रभा भूमयो घनाम्बूवाताकाशप्रतिष्ठाः सप्ताऽधोऽधः ॥१॥ अर्थ- ( रत्नशर्कराबालुकापङ्कधूमतमोमहातम:प्रभा) रत्नप्रभा,' शर्कराप्रभा, बालुकाप्रभा, पङ्कप्रभा, धूमप्रभा, तमःप्रभाऔर महातमप्रभा, ये भूमियां (सप्त) सात हैं और क्रमसे (अधोऽधः) नीचे नीचे (घनाम्बुवाताकाशप्रतिष्ठाः) घनोदधिवातवलय, घनवातवलय, तनुवातवलय और आकाशके आधार हैं। विशेष- रत्नप्रभा पृथ्वीके तीन भाग है- १ खरभाग, २ पङ्कभाग और ३ अब्बहूल भाग। इनमेंसे उपरके दो भागोंमें व्यंतर तथा भवनवासी देव रहते हैं, और नीचेके अब्बहूल भागमें नारकी रहते हैं। इस पृथ्वीकी कुल मोटाई एक लाख अस्सी हजार योजनकी है ॥१॥ . सात पृथिवियोंमें नरकों (बिलों) की संख्या- " तासुत्रिंशत्पञ्चविंशतिपंचदशदशत्रिपंचोनैकनरकशतसहस्राणि पंच चैव यथाक्रमम् ॥२॥ .. अर्थ- ( तासु ) उन पृथिवियोंमें ( यथाक्रमम् ) क्रमसे (त्रिंशत् 1. रत्नप्रभा आदि पृथ्वीके नाम सार्थक है। रूढ नाम इस प्रकार है। १ धम्मा, २ वंशा. ३ मेघा, ४ अञ्जना. ५ अरिष्ठा, ६ मधवी और ७ माधवी। 2. दो हजार कोश। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001795
Book TitleMokshshastra
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
AuthorPannalal Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, P000, P005, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size12 MB
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