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मोक्षशास्त्र सटीक
शेषास्त्रिवेदाः ॥ ५२ ॥
अर्थ- शेष बचे हुए मनुष्य और तिर्यञ्च तीनों वेदवाले होते हैं। अकालमृत्यु किनकी नहीं होती ? औपपादिकचरमोत्तमदेहाऽसंख्येयवर्षायु
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षोऽनपवर्त्यायुषः ॥ ५३ ॥
अर्थ- उपपाद जन्मवाले देव नारकी, तद्भवमोक्षगामियों में श्रेष्ठ तीर्थङ्कर आदि तथा असंख्यात वर्षोंकी आयुवाले-भोगभूमिके जीव परिपूर्ण आयुवाले होते है। अर्थात् इन जीवोंकी असमयमें मृत्यु नहीं होती ॥५३॥ भावार्थ- आयुकर्मके निषेकोंका क्रमक्रमसे न खिरकर एक साथ खिर जाना अकाल मरण कहलाता है। यह अकाल मरण कर्मभूमिके मनुष्य और तिर्यञ्चोंके ही सम्भव होता है। कर्मभूमिमें भी तद्भवमोक्षगामी मनुष्योंके नहीं होता ।
इति श्रीमदुमास्वामिविरचिते मोक्षशास्त्रे द्वितीयोऽध्यायः ॥ प्रश्नावली
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जीवके असाधारण भाव कितने हैं ?
इस समय तुम्हारे कितने भाव हैं ?
विग्रहगतिमें जीव अनाहारक कबतक और क्यों रहता है ? योनि और जन्ममें क्या अन्तर हैं ?
मनुष्योंके कौन कौनसे जन्म होते है ?
तुम्हारे कितने शरीर हैं ?
देवोंके आहारक शरीर हो सकता हैं या नहीं ?
यदि आगे आगेके शरीर अधिक अधिक प्रदेशवाले हैं तो वे अधिक स्थानको क्यों नही घेरते ?
आप यह बात किस प्रकार जानते हैं कि अमुक व्यक्तिकी असमय मृत्यु हुई है ।
नारकियोंके कौनसा लिङ्ग होता है ?
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