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________________ द्वितीय अध्याय नहीं हो और जो पैदा होते ही चलने फिरने लग जावें उन्हें पोत कहते हैं, जैसे-हरिण, सिंह वगैरह ॥३३॥ उपपाद जन्म किससे होता है ? देवनारकाणामुपपादः ॥३४॥ अर्थ-(देवनारकाणाम् )देव और नारकियोंके ( उपपादः) उपपाद जन्म ही होता है अथवा उपपाद जन्म देव और नारकियोंके ही होता है। सम्मूर्च्छन जन्म किसके होता है ? शेषाणांसम्मूर्च्छनम् ॥३५॥ अर्थ- (शेषाणां ) गर्भ और उपपाद जन्मवालोसे बाकी बचे हुए जीवोके ( सम्मूछनम् ) सम्मूर्छन जन्म ही होता है। अथवा सम्मूर्च्छन जन्म शेष जीवोंके ही होता है। नोट- एकेन्द्रियसे लेकर असैनी पंचेन्द्रिय तिर्यंचोंका नियमसे सम्मूर्च्छन जन्म होता है। बाकी तिर्यंचोंके गर्भ और सम्मूर्च्छन दोनों होते हैं। लब्ध्यपर्याप्तक मनुष्योंका भी सम्मूर्च्छन जन्म होता है ॥३५॥ शरीरके नाम व भेदऔदारिकवैक्रियिकाहारकतैजसकार्मणानि शरीराणि ॥३६॥ अर्थ- औदारिक, वैक्रियिक, आहारक, तैजस और कार्मण ये पांच शरीर है। औदारिक शरीर-स्थूल शरीर( जो दूसरेको छेडे और दूसरेसे छिड सके) को औदारिक शरीर कहते हैं। यह मनुष्य और तिर्यंचोंके होता है। 1. उपर कहे हुए तीनों सूत्रोमें 'पाथं एव धनुर्धरः ' की तरह दोनों ओरसे नियम है। Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.001795
Book TitleMokshshastra
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
AuthorPannalal Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, P000, P005, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size12 MB
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