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________________ ४२ ] मोक्षशास्त्र सटीक वैक्रियिक शरीर जिसमें हल्के भारी तथा कई प्रकारके रूप बनानेकी शक्ति हो उसे वैक्रियिक शरीर कहते हैं। यह देव और नारकियोंके होता है। विक्रिया ऋद्धि इससे भिन्न है । आहारक शरीर सूक्ष्मपदार्थके निर्णयके लिये या संयमकी रक्षाके लिये छठवें गुणस्थानवर्ती मुनिके मस्तकसे एक हाथका जो सफेद रंगका पुतला निकलता है उसे आहारक शरीर कहते हैं । तैजस शरीर - जिसके कारण शरीरमें तेज रहे उसे तैजस शरीर कहते हैं । कार्मण शरीर - ज्ञानावरणादि आठ कर्मोके समूहको कार्मण शरीर कहते हैं । शरीरोंकी सूक्ष्मताका वर्णनपरं परं सूक्ष्मम् ॥ ३७॥ अर्थ - पूर्वसे (परं परम् ) आगे आगेके शरीर (सूक्ष्मम् ) सूक्ष्म सूक्ष्म हैं । अर्थात् औदारिकसे वैक्रियिक, वैक्रियिकसे आहारक, आहारकसे तैजस और तैजससे कार्मण शरीर सूक्ष्म है ॥ ३७ ॥ शरीरके प्रदेशोंका विचार प्रदेशतोऽसंख्येयगुणं प्राक्तैजसात् ॥ ३८ ॥ अर्थ - ( प्रदेशतः ) प्रदेशोंकी अपेक्षा ( तैजसात् प्राक् ) तैजस शरीरसे पहले पहलेके शरीर (असंख्येयगुणम्) असंख्यातगुणे हैं। भावार्थ - औदारिक शरीरकी अपेक्षा असंख्यातगुणे प्रदेश (परमाणु) वैक्रियिकमें और वैक्रियिककी अपेक्षा असंख्यातगुणे आहारकमें है । अनन्तगुणे परे ॥ ३९ ॥ अर्थ - ( परे ) बाकीके दो शरीर (अनन्तगुणे) अनन्तगुणे प्रदेशवाले Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001795
Book TitleMokshshastra
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
AuthorPannalal Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, P000, P005, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size12 MB
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