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________________ माक्षशास्त्र सटीक अभिप्राय प्रकट किया है कि मैं व्यक्ति विशेषका पूजक न होकर गुणोंका पूजक हूँ जिसमें मोक्षमार्गका नेतृत्व-हितोपदेशीपना,कर्मभूभृद् भेत्तृत्ववीतरागता और विश्वतत्वज्ञात्तृत्व-सर्वज्ञता ये तीन गुण हों, मैं उसीका पूजक हूँ, वही मेरा आराध्य देव हैं।' मोक्षप्राप्तिका उपाय सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणिमोक्षमार्गः ॥१॥ अर्थ-( सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि ) सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र ये तीनों मिलकर ( मोक्षमार्गः) मोक्षक मार्ग अर्थात् मोक्षकी प्राप्तिके उपाय हैं। सम्यग्ज्ञान- संशय विपर्यय और अनध्यवसायरहित जीवादि पदार्थोका जानना सम्यग्ज्ञान कहलाता है। सम्यक्चारित्र-मिथ्यादर्शन, कषाय तथा हिंसा आदि संसारके कारणोंसे विरक्त होना सम्यक्चारित्र कहलाता है। सम्यग्दर्शनका लक्षण आगेके सूत्रमें कहते हैं ॥१॥ 1. आप्तेनोच्छिन्नदोषेण, सर्वज्ञेनागमेशिना। भवितव्यं नियोगेन नान्यथा ह्याप्तता भवेत्तृ ॥ (समन्तभद्र) राग आदि दोष रहित सर्वज्ञ और हितोपदेशी ही आप्त हो सकता है। 2. ' मोक्षमार्गः' इस पदमें व्याकरणके नियमके अनुसार बहुवचन होना चाहिये था पर आचार्यने एकवचन ही रखा है इससे सूचित होता है कि सम्यग्दर्शन आदि तीनोंका मिलना ही मोक्षका मार्ग है। 3. अनिश्चित ज्ञान, जैसे यह सीप है या चांदी। 4. उल्टा ज्ञान, जैसे रस्सीमें सांपका ज्ञान। 5. अनिश्चित तथा विकल्परहित ज्ञान, जैसे चलते समय पावोंसे छूए हुए पत्थर वगैरहमें कुछ है 'इस प्रकारका ज्ञान । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001795
Book TitleMokshshastra
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
AuthorPannalal Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, P000, P005, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size12 MB
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