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मोक्षशास्त्र सटीक यह विवक्षाभेद हैं। [५३] शंका-गुणश्रेणी निर्जराका क्या कारण हैं ?
[५३] समाधान-सम्यग्दर्शनादिक गुण, गुणश्रेणी निर्जराका कारण है।
[५४] शंका-पुलाकादि मुनियोमें किन कारणोंसे भेद होता है ?
[५४] समाधान-ये सब मुनि निर्ग्रन्थ हैं, केवल चारित्रकी न्युनाधिकताके कारण इनमें भेद हैं। जो उत्तर गुणोंको नहीं पालते किन्तु मूल गुणोंमें भी पूर्णताको नहीं प्राप्त हैं वे पुलाक मुनि कहलाते हैं। पुलाक प्यालको कहते हैं। वह जैसा सार भाग रहित होता है उसी प्रकार इन मुनियोंको जानना चाहिए। जो व्रतोंको तो पूरी तरह पालते हैं किंतु शरीर और उपकरणोंको संस्कारित करते रहते हैं, ऋद्धि और यशकी अभिलाषा रखते हैं आदि वे वकुश मुनि कहलाते
कुशील मुनि दो प्रकारके हैं-प्रतिसेवनाकुशील और कषायकुशील। जो मूलगुणों और उत्तरगुणोंको पालते तो है पर कदाचित् उत्तरगुणोंकी विराधना कर लेते है वे प्रतिसेवनाकुशील मुनि कहताले हैं। जो ग्रीष्मकालमें जंघाप्रक्षालन आदिके कारण अन्य कषायके उदयके आधीन होते हुए भी संज्वलन कषाययुक्त हैं वे मुनि कषायकुशील मुनि कहलाते हैं। जिनके अन्तर्मुहूर्तमें केवलज्ञान प्राप्त होनेवाला है वे निर्ग्रन्थ मुनि कहलाते हैं। जिन्होंने घातिया कर्मोका नाश कर दिया है वे स्नातक मुनि कहलाते हैं। इस प्रकार उपर जो इनके लक्षण दिये हैं इन्हींसे इनके भेदका कारण ज्ञात हो जाता है।
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