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________________ - शंका समाधान [२३१ इसलिए प्रतिक्रमण और तदुभयमें कोई भेद नहीं रहता है तो भी इनके भेदका कारण यह है कि प्रतिक्रमण नामके प्रायश्चितको शिष्य करता है जो गुरुके सामने दोषोंके निवेदन कर देनेपर उनकी आज्ञासे किया जाता है और तदुभय नामके प्रायश्चितको स्वयं गुरु कहता है। इस प्रकार इन तीनोंमें अंतर जानना चाहिए। । [५२] शंका-धर्मध्यान और शुक्लध्यान कहांसे कहां तक ? [५२] समाधान-सर्वार्थसिद्धिमें बतलाया है कि अविरत, देशविरत, प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयत जीवोंके चारों प्रकारका धर्मध्यान होता है। तथा शुक्लध्यानके चार भेदोंमेंसे पृथक्त्व विर्तक वीचार नामक पहला ध्यान उपशम श्रेणीके सब गुणस्थानमें और क्षपक श्रेणीके दशवें गुणस्थान तक होता है। एकत्ववितर्क वीचार नामका दूसरा ध्यान क्षीणमोह गुणस्थानमें होता है। सूक्ष्मक्रियाप्रतिपाति नामका तीसरा ध्यान संयोगकेवलीके काययोगके सूक्ष्म हो जानेपर होता है और व्युपरतक्रिया निवृति नामका चौथा ध्यान अयोगकेवलीके होता हैं किन्तु धवल टीकामें बतालाया हैं कि धर्मध्यान चौथे गुणस्थानसे लेकर दशवें गुणस्थान तक होता हैं। शुक्लध्यानका पहला भेद ग्यारहवें गुणस्थानमें होता हैं और दूसरा भेद बारहवें गुणस्थानमें होता हैं। पहला भेद बारहवेंके प्रारम्भमें भी पाया जाता हैं। इतने अन्तरको छोड़कर शेष कथन सर्वार्थसिद्धिके समान हैं। इस मतभेदका कारण यह हैं कि वीरसेनस्वामीने बतलाया हैं कि सकषाय अवस्थामें धर्मध्यान और कषायरहित अवस्थामें शुक्लध्यान होता है किंतु सर्वार्थसिद्धिकारने धर्मध्यान और शुक्लध्यानमें इस प्रकार अन्तर नहीं माना हैं। उनके मतसे श्रेणी आरोहणके पूर्वतक धर्मध्यान और श्रेणी में शुक्लध्यान होता है। तत्वत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001795
Book TitleMokshshastra
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
AuthorPannalal Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, P000, P005, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size12 MB
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