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शंका समाधान
[२३३ दशवां अध्याय[५५] शंका-मोक्षमें भव्यत्व भावका नाश क्यों हो जाता है ?
[५५] समाधान-भव्यत्व और अभव्यत्व योग्यता-विशेषसे सम्बन्ध रखते हैं। ये जीवके स्वभाव नहीं। यदि इन्हें स्वभाव मान लिया जाय तो जिस प्रकार स्वभाव भेदसे पाँच अचेतन द्रव्यमाने हैं उसी प्रकार स्वभाव भेदसे दो अचेतन द्रव्य हो जायेगे। परन्तु ऐसा नहीं है क्योंकि शक्तिकी अपेक्षा सबकी योग्यता समान मानी है। यह भेद तो केवल व्यक्ति होने और न होनेकी अपेक्षा किया गया है। अब जिसके व्यक्ति हो जाती है उसके भव्यत्व भावके माननेका कारण नहीं। जब तक पूर्व अवस्था अर्थात् कारण अवस्था हैं तभीतक भव्यत्व भावका व्यवहार होता है, कार्य अवस्थामें नहीं। उदाहरण विवक्षित मिट्टी घट बननेकी योग्यता अभीतक कही जाती है जबतक उसका घट रुपसे परिणमन नहीं हुआ। घट अवस्थाके उत्पन्न हो जानेपर तो इस मिट्टीमें घट बनने की योग्यता है यह व्यवहार समाप्त हो जाता है। इसी प्रकार प्रकृतमें जानना चाहिए। भव्यत्व और अभव्यत्व भावको जो पारिणामिक कहा है सो उसका कारण यह है कि इन भावोंके होने में कर्मोके उदयादिकी अपेक्षा नहीं पड़ती।ईसी कारण मोक्षमें भव्यत्व भावका अभाव बतलाया है।
[५६] शंका-मुक्त जीवोंका निवास कहाँ हैं ? - [५६] समाधान-लोकाग्रमें मनुष्यलोकके ठीक बराबर उसकी शोधमें सिद्धलोक है इसका ऊपरी भाग अलोकाकाशसे लगा हुआ हैं। और तनुवातवलयसे व्याप्त है वहीं सिद्ध जीवोंका निवास है। आठवीं पृथिवी जिसे सिद्धशिला कहते हैं सिद्धलोकसे बहुत नीचे है। सिद्ध जीवोंका इससे स्पर्श नहीं है।
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