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मोक्षशास्त्र सटीक
अध्यवसायस्थान और योगस्थानके क्रमका कथन किया है वही क्रम समयाधिक अन्तः कोड़ाकोड़ी सागरप्रमाण स्थितिके प्रति भी जानना चाहिए । आगे भी क्रमसे ज्ञानावरण क्रमकी तीस कोड़ाकोड़ी सागरप्रमाण स्थिति समाप्त करना चाहिए। तथा ज्ञानावरण कर्मकी स्थितिका जो परिवर्तन क्रम बतलाया है उसी प्रकार सब मूल प्रकृति और उत्तर प्रकृतिओंका जानना चाहिए। इस प्रकार यह सब मिलकर एक भाव परिवर्तन होता है।
इस प्रकार ये पांच परिवर्तन हैं। इनमें उत्तरोत्तर अधिककाल लगता है। इन परिवर्तनोंका कथन करते समय हमारी दृष्टि संक्षपसे इनके स्वरूपके बतलानेकी रही। इनका विशेष खुलासा जो जानना चाहें वे अन्यत्रसे जान सकते है।
[१८] शंका- चक्षु आदि इन्द्रियावरण कर्मका क्षयोपशम सर्वाङ्ग होता है या नियत स्थानमें ?
[१८] समाधान-चक्षु आदि इंद्रियावरण कर्मका क्षयोपशम सर्वाङ्ग होता है । नियत स्थानमें तो उनकी निवृत्ति होती है । बात यह है कि एक तो क्षयोपशम नियत स्थानमें बन नहीं सकता। दूसरे आत्माके आठ मध्य प्रदेशोंको छोड़कर शेष सब प्रदेश चलायमान रहते हैं। अब जिन प्रदेशोंमें चक्षु आदि इन्द्रियावरण कर्मका क्षयोपशम है उनके नियत स्थानसे हट जाने पर और उनके स्थानमें अन्य प्रदेशोंके आ जानेपर उनसे रूपादिकका ग्रहण नहीं हो सकता। परन्तु ऐसी बात होती नहीं अतः सिद्ध हुआ कि चक्षु आदि इन्द्रियावरण क्षयोपशम सर्वाङ्ग ही होता हैं।
[१९] शंका - जन्म और योनिमें क्या अन्तर है ?
[१९] समाधान-योनि आधार है और जन्म आधेय । योनि उसे कहते है जिसमें जीव उत्पन्न होता है और जन्म नूतन पर्यायके ग्रहणका नाम है। इस प्रकार इन दोनोंमें बड़ा अन्तर है ।
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