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________________ २०६] मोक्षशास्त्र सटीक संसार अवस्थामें एकजीवके एकसाथ कमसे कम तीन और अधिकसे अधिक पांच भाव होते हैं किन्तु मुक्तात्माके क्षायिक और पारिणामिक ये दो ही भाव पाये जाते हैं । इसलिये यदि संसार मोक्ष अवस्थाका भेद न करके विचार किया जाता हो तो एकसाथ एक जीवके कमसे कम दो और अधिकसे अधिक पांच भाव भी बन जाते हैं। यहां पर प्रत्येक भावके अवान्तर भावोंकी विवक्षा नहीं की है। [१६] शंका-क्षायोपशमिक सम्यग्दर्शनकी उत्कृष्ट स्थिति कितनी और वह किस प्रकार घटित होती है ? [१६] समाधान-क्षायोपशमिक सम्यग्दर्शनकी उत्कृष्ट स्थिति छयासठ सागर बतलायी है, किन्तु पूरा छयासठ सागर उसी वेदक सम्यग्दृष्टिके प्राप्त होता है जो वेदक सम्यक्त्वके अन्त में क्षायिक सम्यग्दृष्टि हो जाता है। यदि ऐसा जीव मिथ्यात्वमें जाता हैं तो उसके क्षायोपशमिक सम्यग्दर्शनका उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त कम छयासठ सागर ही प्राप्त होता हैं। मान लो कोई एक उपशम सम्यग्दृष्टि मनुष्य वेदक सम्यक्त्वको प्राप्त होकर मनुष्य पर्याय सम्बन्धी शेष भुज्यमान आयुसे रहित बीस सागरकी आयुवाले देवोंमें उत्पन्न हुआ। वहांसे पुनः मनुष्य होकर तदनन्तर मनुष्य आयुसे न्यून बाईस सागरकी आयुवाले देवोंमें उत्पन्न हुआ। वहांसे पुनः मनुष्य होकर तदनन्तर भुज्यमान मनुष्यायुसे तथा देव पर्यायसे अनन्तर प्राप्त होनेवाली मनुष्यायुमेंसे क्षायिक सम्यग्दर्शनके प्राप्त होने तकके कालसे पुनः चौबीस सागर आयुवाले देवोंमें उत्पन्न हुआ। तदनन्तर मनुष्य हुआ और इसके जब वेदक सम्यक्त्वके कालमें अन्तर्मुहूर्त शेष रह जाय, तब दर्शनमोहनीयके क्षपणका प्रारंभ करके यह जीव कृत्यकृत्य वेदक सम्यक्त्वको प्राप्त करता है। इस प्रकार कृतकृत्य वेदक सम्यक्त्वके अन्तिम समय तक पूरे छयासठ सागर हो जाते हैं। वेदक हुआ। तदनना र तब दर्शनमोडीदक सम्यक्त्व Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001795
Book TitleMokshshastra
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
AuthorPannalal Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, P000, P005, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size12 MB
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