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शंका समाधान
[२०५ शब्दनयका विषय सूक्ष्म है और इसका विषय स्थूल। समभिरुढ़ नय लिंगादिकका भेद हो जानेपर भी एक अर्थमें एक शब्दको ही स्वीकार करता है किन्तु शब्दनय में यह बात नहीं पाई जाती इसलिए शब्दनयके विषयसे समभिरुढ़ नयका विषय सूक्ष्म है और शब्दनयका विषय स्थूल। एवं भूत नय रौढिक अर्थको स्वीकार न करके तक्रियापरिणत समयमें व्युत्पत्तिरुप अर्थको ही स्वीकार करती है इसलिए समभिरूढ़ नयके विषयसे एवं भूत नयका विषय सूक्ष्म हैं और समभिरूढ़ नयका विषय स्थूल। इनमेंसे प्रारंभके चार नय अर्थ नय हैं, क्योंकि शब्दकी अपेक्षा उनके विषयका विचार नहीं किया जाता और अंतके तीन नय शब्दनय हैं क्योंकि इनके विषयका शब्दकी अपेक्षा विचार किया है। इस प्रकार सात नयोंका स्वरूप और उनमें परस्पर तारतम्य जानना चाहिये।
दूसरा अध्याय[१५] शंका-एकसाथ एक जीवके कमसे कम और अधिकसे अधिक कितने भाव हो सकते हैं ?
[१५] समाधान-भाव पांच हैं-औपशमिक, क्षायिक, क्षायोपशमिक औदयिक और पारिणामिक। मिथ्याद्दष्टि जीवके तीन भाव हैं-क्षायोपशमिक औदयिक और पारिणामिक। यहां मतिज्ञान आदि क्षायोपशमिक भाव हैं। क्रोधादि औदयिक भाव हैं और जीवत्व आदि पारिणामिक भाव हैं। तथा जो क्षायिक सम्यग्दृष्टि जीव उपशम श्रेणीपर चढ़कर उपशान्त मोही हो जाते हैं उनके पांचो भाव होते हैं। यहां कषायका उपशम हो जानेसे उपशान्त कषाय यह औपशमिक भाव है। दर्शनमोहनीय क्षय होनेसे क्षायिकका सम्यग्दर्शन यह क्षायिक भाव है। शेष तीन भाग पूर्ववत् हैं, किन्तु इतनी विशेषता है कि गुणस्थान प्रतिपन्न जीवोंके अभव्यत्व भाव नहीं होता। इस प्रकार
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