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मोक्षशास्त्र सटीक
दोधक वृत्तअक्षरमात्रपदस्वरहीनंव्यञ्जनसन्धिविवर्जितरेफम् ।
साधुभिरत्र मम क्षमितव्यं कोन विमुह्यति शास्त्रसमुद्रे ॥ १ ॥
अर्थ- इस शास्त्रमें यदि कहीं अक्षर मात्रा पद या स्वर रहित हो तथा व्यंजन सन्धि व रेफसे रहित हो तो सज्जन पुरुष मुझे क्षमा करें। क्योंकि शास्त्ररूपी समुद्रमें कौन पुरुष मोहको प्राप्त नहीं होता अर्थात् भूल नहीं करता ।। १ ।।
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अनुष्टुप् - दशाध्याये परिच्छिन्ने तत्त्वार्थ पठिते सति ।
फलं स्यादुपवासस्य भाषितं मुनिपुङ्गवैः ॥ २ ॥
अर्थ- दश अध्यायोंमें विभक्त इस तत्वार्थसूत्र (मोक्षशास्त्र ) के पाठ करने तथा परिच्छेदन अर्थात् मननसे श्रेष्ठ मुनियोंने एक उपवासका फल कहा है।
भावार्थ - जो पुरुष भावपूर्वक पूर्ण मोक्षशास्त्रका पाठ करता है और उसका चिन्तन करता है उसे एक उपवासका फल लगता है ॥२॥
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1. ये दोनों श्लोक मूल ग्रंथकर्ताके बनाये हुए नहीं है।
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