SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 228
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दशम अध्याय [१८३ लिंग-वास्तवमें • अलिंगसे ही सिद्ध होते हैं अथवा द्रव्यपुलिंगसे ही सिद्ध होते हैं। भावलिंगकी अपेक्षा तीनों लिंगोंसे मुक्त हो सकते हैं। तीर्थ-कोई तीर्थंकर होकर सिद्ध होते हैं, कोई बिना तीर्थंकर हुए सिद्ध होते हैं। कोई तीर्थंकरके कालमें सिद्ध होते हैं और कोई तीर्थकरके मोक्ष चले जानेके बाद उनके तीर्थ ( आम्नाय) में सिद्ध होते हैं। चारित्र- चारित्रकी अपेक्षा कोई एकसे अथवा कोई भूतपूर्व नयकी अपेक्षा दो तीन चारित्रसे सिद्ध हुए हैं। प्रत्येकबुद्धबोधित- कोई स्वयं संसारमें विरत होकर मोक्षको प्राप्त हुए हैं और कोई किसीके उपदेशसे । ज्ञान- कोई एक ही ज्ञानसे और कोई भूतपूर्व नयकी अपेक्षा दो तीन चार ज्ञानसे सिद्ध हुए हैं। अवगाहना- कोई उत्कृष्ट अवगाहना-पांचसौ पचीस धनुषसे सिद्ध हुए है, कोई मध्यम अवगाहनासे और कोई जघन्य अवगाहना-कुछ कम साढ़े तीन हाथसे सिद्ध हुए हैं। अन्तर- एक सिद्ध से दूसरे सिद्ध होनेका अन्तर जघन्यसे एक समय और उत्कृष्टसे आठ समयका है तथा विरहकाल जघन्यसे एक समय और उत्कृष्टसे छः माहका होता है। संख्या- जघन्यसे एक समयमें एक ही जीव सिद्ध होता है। और उत्कृष्टतासे १०८ जीव सिद्ध हो सकते हैं। अल्पबहुत्व- समुद्र आदि जल-क्षेत्रोंसे थोड़े सिद्ध होते हैं और विदेहादि क्षेत्रोंसे अधिक सिद्ध होते हैं। इस प्रकार सिद्ध जीवोंमें बाह्य निमित्तकी अपेक्षा भेदकी कल्पना की गई है। वास्तवमें आत्मीय गुणोंकी अपेक्षा कुछ भी भेद नहीं रहता॥९॥ ॥ इति श्रीमदुमास्वामिविरचिते मोक्षशास्त्रे दशमोऽध्यायः॥ 4. भाववेदका उदय नवम गुणस्थान तक रहता है इसलिए मोक्ष अवेद दशामें ही होता है। 5. भूतकालकी बातको वर्तमानमें कहनेवाला। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001795
Book TitleMokshshastra
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
AuthorPannalal Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, P000, P005, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy