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मोक्षशास्त्र सटीक लोकाग्रके आगे नहीं जाने में कारण
धर्मास्तिकायाभावात् ॥८॥
अर्थ- धर्मद्रव्यका अभाव होनेसे मुक्त जीव लोकग्रह भागके आगे अर्थात् अलोकाकाशमें नहीं जाते। क्योंकि जीव और पुद्गलोंका गमन धर्मद्रव्यकी सहायतासे ही होता है और अलोकाकाशमें धर्मद्रव्यका अभाव है' ॥८॥
मुक्त जीवोंमें भेद होनेके कारणक्षेत्रकालगतिलिङ्गतीर्थचारित्रप्रत्येकबुद्धबोधित ज्ञानावगाहनांतरसंख्याल्पबहुत्वतः साध्याः ।९।
अर्थ-क्षेत्र, काल, गति, लिंग, तीर्थ, चारित्र, प्रत्येकबुद्धबोधित, ज्ञान, अवगाहन, अन्तर, संख्या और अल्पबहुत्व इन बारह अनुयोगोंसे सिद्धोंमें भी भेद साधने योग्य हैं।
भावार्थ- क्षेत्र-कोई भरतक्षेत्रसे, कोई ऐरावतक्षेत्रसे और कोई विदेहक्षेत्रसे सिद्ध हुए है। इस प्रकार क्षेत्रकी अपेक्षा सिद्धोंमें भेद होता है।
काल -कोई उत्सर्पिणी कालमें सिद्ध हुए हैं और कोई अवसर्पिणीकालमें।
___ गति-कोई सिद्ध गतिसे और कोई मनुष्य गतिसे सिद्ध हुए हैं। 1. लोकके अन्तमें ४५ लाख योजन विस्तारवाली सिद्धशिला है, मुक्त जीव उसीके उपर तनुवातवलयमें ठहर जाते हैं। मोक्षमें मुक्त जीवोंके शिर एक बराबर स्थान पर रहते हैं । मुक्त जीवोंका सिद्धशिलासे सम्बन्ध नहीं रहता। 2. संहरणकी अपेक्षा अढाई द्वीप मात्रसे मुक्त होते है। 3. अवसर्पिणीके सुषमादुषमा नामक तीसरे कालके अंतिम भागसे लेकर दूषमासुषमा नामक चौथे कालतक उत्पन्न हुए जीव ही मुक्त होते है। चौथे कालका उत्पन्न हुआ जीव पंचमकालमें मुक्त हो सकता है पर पंचमका पेदा हुआ पंचममें मुक्त नहीं हो सकता।
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