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________________ - - निगर __मोक्षशास्त्र सटीक निर्जरानुप्रेक्षा- सविपाकनिर्जरासे आत्मा का कुछ भला नहीं होता किन्तु अविपाकनिर्जरासे ही आत्माका कल्याण होता है। इत्यादि निर्जराके स्वरुपका चिंतवन करना सो निर्जरानुप्रेक्षा है। लोकानुप्रेक्षा- अनन्त अलोकाकाशके ठीक बीचमें रहनेवाले चौदह राजु-प्रमाण लोकके आकारादिकका चिन्तवन करना सो लोकानुप्रेक्षा है। बोधिदुर्लभानुप्रेक्षा- रत्नत्रयरुप बोधिका प्राप्त होना अत्यन्त कठिन है, इस प्रकार विचारना सो बोधिदुर्लभानुप्रेक्षा है। धर्म स्वाख्यातत्वानुप्रेक्षा- जिनेन्द्र भगवानके द्वारा कहा हुआ अहिंसा लक्षणवाला धर्म ही जीवोंका कल्याण करनेवाला है। इसके प्राप्त न होनेसे ही जीव चतुर्गतिके दुःख सहते है, आदि विचार करना सो धर्म स्वाख्यातत्वानुप्रेक्षा है। नोट- इन अनुप्रेक्षाओं का चिन्तवन करनेवाला जीव उत्तम क्षमा आदि धर्मोको पालता है और परिषहोंको जीतता है। इसलिए इनका कथन दोनोंके बीचमें किया गया है।॥ ७॥ परिषह सहन करनेका उपदेशमार्गाच्यवननिर्जरार्थ परिषोढव्याः परिषहाः।८। __अर्थ- संवरके मार्गसे च्युत न होनेके लिए तथा कर्मोकी निर्जराके हेतु बाईस परिषह सहन करने योग्य हैं॥८॥ बाईस परिषहक्षुत्पिपासाशीतोष्णदंशमशकनाग्न्यारतिस्त्रीचर्यानिषद्याशय्याक्रोशवधयाचनाऽलाभरोगतृणस्पर्शमलसत्कारपुरस्कारप्रज्ञाऽज्ञानाऽदर्शनानि॥९॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001795
Book TitleMokshshastra
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
AuthorPannalal Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, P000, P005, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size12 MB
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