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मोक्षशास्त्र सटीक स यथानाम ॥२२॥
अर्थ- वह अनुभागबन्ध कर्मोके नामानुसार ही होता है।
भावार्थ- जिस कर्मका जैसा नाम है उसमें वैसा ही अनुभाग बन्ध पड़ता है। जैसे ज्ञानावरण कर्ममें ज्ञानको रोकना, दर्शनावरण कर्म में 'दर्शनको रोकना' आदि ॥ २२॥ फल दे चुकनेके बाद कर्मोका क्या होता है ?
ततश्च निर्जरा ॥२३॥ अर्थ- तीव्र मन्द या मध्यम फल दे चुकनेके बाद कर्मोकी निर्जरा हो जाती है। अर्थात् कर्म उदयमें आकर आत्मासे पृथक् हो जाते हैं।
निर्जराके दो भेद हैं- १ सविपाक निर्जरा और २ अविपाक निर्जरा।
सविपाक निर्जरा- शुभ अशुभ कर्मोको जिस प्रकार बांधाथा उसी प्रकार स्थिति पूर्ण होने पर फल देकर आत्मासे पृथक् होनेको सविपाक निर्जरा कहते हैं।
अविपाक निर्जरा- उदयकाल प्राप्त न होनेपर भी तप आदि उपायोंसे बीचमें ही फल भोगकर खिरा देनेको अविपाक निर्जरा कहते हैं।
___नोट- इस सूत्रमें जो 'च' शब्दका ग्रहण किया है उससे नवमें अध्यायके 'तपसा निर्जरा च' इस सूत्रसे सम्बन्ध सिद्ध होता है जिससे यह सिद्धहुआ कि कर्मोकी निर्जरातपसे भी होती है, अथात् उक्त दो प्रकारकी निर्जराके कारण क्रमसे कर्मोका विपाक और तपश्चरण है ॥ २३ ॥
1. 'विशिष्ट पाकः' अथवा 'विविधः पाक: विपाकः'।
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