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________________ | 1 or n MP m x 5 w | अन्तर्मुहूर्त अष्टम अध्याय [१५१ कर्मप्रकृति भेद तथा स्थितिबन्ध नं. कर्म भेद उत्कृष्ट स्थिति जघन्य स्थिति ज्ञानावरण ३० कोड़ाकोड़ी सागर अन्तर्मुहूर्त दर्शनावरण | ३० कोड़ाकोड़ी सागर वेदनीय ३० कोड़ाकोड़ी सागर- | १२ मुहुर्त मोहनीय ७० कोड़ाकोड़ी सागर आयु ४ | ३३ सागर ६ नाम | २० कोड़ाकोडी सागर ८ मुहूर्त (९३) ७ गोत्र २ | २० कोड़ाकोड़ी सागर ८ मुहूर्त ८ अन्तराय ५ ३० कोड़ाकोड़ी सागर | अन्तर्मुहूर्त प्रदेशबन्धका वर्णन प्रदेशबन्धका स्वरुपनामप्रत्ययाः सर्वतो योगविशेषात्सूक्ष्मैकक्षेत्राव गाहस्थिताः सर्वात्मप्रदेशेष्वनन्तानन्तप्रदेशा:२४ ou अर्थ- ( नामप्रत्ययाः) ज्ञानावरणादि कर्मप्रकृतियोंके कारण (सर्वतः) सब ओरसे अथवा देव नारकादिसमस्त भवों में (योगविशेषात् ) मन वचन कायरुप योगविशेषसे ( सूक्ष्मैक क्षेत्रावगाहस्थिताः) सूक्ष्म तथा एकक्षेत्रावगाहरुप स्थित सर्वात्मप्रदेशेषु सम्पूर्णे आत्माके प्रदेशोमें जो (अनन्तानन्तप्रदेशाः) कर्मरुप पुद्गलके अनन्तानन्त प्रदेश हैं उनको प्रदेशबन्ध कहते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001795
Book TitleMokshshastra
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
AuthorPannalal Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, P000, P005, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size12 MB
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