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अपम अध्याय
[ १४९ नाम और गोत्रकी जघन्य स्थिति
नामगोत्रयोरष्टौ ॥१९॥ अर्थ- नाम और गोत्र कर्मकी जघन्य स्थिति आठ मुहूर्तकी है ॥१९॥
शेष पांच कर्मोकी जघन्य स्थिति
शेषाणामन्तर्मुहूर्ता ॥२०॥ अर्थ- बाकीके ज्ञानावरण, दर्शनावरण, मोहनीय, अन्तराय और आयु कर्मकी जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त' है ॥ २०॥
अनुभव ( अनुभाग) बन्धका वर्णनअनुभव बन्धका लक्षण
: ॥२१॥ अर्थ- कषायोंकी तीव्रता मन्दता अथवा माध्यमतासे जो आस्रवमें विशेषता होती है उससे होने वाले विशेष पाकको विपाक कहते हैं। अथवा द्रव्य, क्षेत्र, काल, भव, भावके निमित्तके वशने नाना-रूपताको प्राप्त होनेवाले पाकको विपाक कहते है। और इस पाकको ही अनुभव अर्थात् अनुभागबन्ध कहते हैं।
नोट-१- शुभ परिणामोंकी अधिकता होनेपर शुभ प्रकृतियोमें अधिक और शुभ प्रकृतियोमें हीन अनुभाग होता है।
नोट-२-अशुभ परिणामोंकी अधिकता होनेपर अशुभ प्रकृतियोमें अधिक और शुभ प्रकृतियोंमे हीन अनुभाग होता है।
1. आवलीसे ऊपर और मुहृतसे नीचेके कालको अन्तमुहूर्त कहते है। असंख्यात समयों की एक आवली होती है।
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