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अष्टम अध्याय
[१४५ ही जीव स्वामी हो उसे प्रत्येक शरीर नामकर्म कहते हैं।
२३-साधारण शरीर- जिसके उदयसे एक शरीरके अनेक जीव स्वामी हों उसे साधारण शरीर नामकर्म कहते है।
२४-त्रस नामकर्म- जिसके उदयसे द्वीन्द्रियादिक जीवोंमें जन्म हो उसे त्रस नामकर्म कहते हैं।
२५-स्थावर नामकर्म- जिस कर्मके उदयसे एकेन्द्रिय जीवोंमें जन्म हो उसे स्थावर नामकर्म कहते हैं।
२६-सुभग नामकर्म- जिसके उदयसे दूसरे जीवींको अपनेसे प्रीति उत्पन्न हो उसे सुभग नामकर्म कहते हैं।
२७-दुर्भग नामकर्म- जिस कर्मके उदयसे रूपादि गुणोंसे युक्त होनेपर भी दूसरे जीवोंकों अप्रीति उत्पन्न हो उसे दुर्भग नामकर्म कहते हैं।
२८-सुस्वर-जिसके उदयसे उत्तम स्वर (आवाज)हो उसे सुस्वर नामकर्म कहते हैं।
२९-दुःस्वर-जिसके उदयसे खराब स्वर हो उसे दुःस्वर नामकर्म कहते हैं।
३०-शुभ- जिसके उदयसे शरीरके अवयव सुन्दर हों उसे शुभ नामकर्म कहते है।
३१-अशुभ- जिसके उदयसे शरीरके अवयव देखनेमें मनोहर न हों उसे अशुभ नामकर्म कहते हैं।
३२-सूक्ष्म- जिसके उदयसे ऐसा शरीर प्राप्त हो जो न किसीको रोक सकता हो और न किसीसे रोका जा सकता हो उसे सूक्ष्म शरीर नामकर्म कहते हैं।
३३-बादर (स्थूल )- जिस कर्मके उदयसे दूसरेको रोकनेवाला तथा दूसरेसे रूकनेवाला स्थूल शरीर प्राप्त हो उसे बादर शरीर नामकर्म कहते है।
1. इनका उदय निगोदिया वनस्पतिकायिक जीवोंके होता है।
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