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मोक्षशास्त्र सटीक
कहते हैं । इनके चार भेद हैं- १ नरक गत्यानुपूर्व्य, २ तिर्यग्गत्यानुपूर्व्य, ३ मनुष्यगत्यानुपूर्व्य और ४ देवगत्यानुपूर्व्य ।
जिस समय आत्मा मनुष्य अथवा तिर्यंच आयुको पूर्णकर पूर्व शरीरसे पृथक् हो नरकभवके प्रति जानेको सन्मुख होता है उस समय पूर्व शरीरके आकार आत्माके प्रदेश जिस कर्मके उदयसे होते हैं उसे नरकगत्यानुपूर्व्य कहते हैं। इसी प्रकार अन्य भेदोंके लक्षण जानना चाहिये । १५- अगुरुलघु-नामकर्म- जिस कर्मके उदयसे जीवका शरीर लोहे के गोलेकी तरह भारी और आकके तूलकी तरह हलका न हो वह अगुरुलघु नामकर्म है ।
१६ - उपघात - जिस कर्मके उदयसे अपने अंगोंसे अपना घात हो उसे उपघात नामकर्म कहते हैं ।
१७- परघात - जिसके उदयसे दूसरेका घात करनेवाले अंगोपांग हो उसे परघात नामकर्म कहते हैं ।
१८ - आतप - जिस कर्मके उदयसे आतापरूप शरीर हो उसे आतप नामकर्म कहते हैं । '
१९- उद्योत जिसके उदयसे उद्योतरूप शरीर हो उसे उद्योत नामकर्म कहते है । '
२०- उच्छ्वास- जिसके उदयसे शरीरमें उच्छ्वास हो उसे उच्छ्वास नामकर्म कहते हैं।
२१ - विहायोगति - जिसके उदयसे आकाशमें गमन हो उसे विहायोगति नामकर्म कहते हैं। इसके दो भेद हैं- १ - प्रशस्त विहायोगति और २- अप्रशस्त विहायोगति ।
२२- प्रत्येक शरीर- जिस नामकर्मके उदयसे एक शरीरका एक 1. इसका उदय सूर्यके विमानमें स्थित बादर पर्याप्त पृथ्वीकायिक जीवोंके होता है। 2. इसका उदय चन्द्रमाके विमानमें स्थित पृथ्वीकायिक जीवोंके तथा खद्योग (जुगनु) आदि जीवोंक होता है।
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