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मोक्षशास्त्र सटीक ३४-पर्याप्ति नामकर्म- जिसके उदयसे अपने योग्य पर्याप्ति पूर्ण हों उसे पर्याप्ति नामकर्म कहते हैं।'
३५-अपर्याप्ति नामकर्म- जिस कर्मके उदयसे जीवके एक भी पर्याप्ति पूर्ण न हो उसे अपर्याप्ति नामकर्म कहते हैं।
३६-स्थिर- जिस कर्मके उदयसे शरीरको धातुएं (रस, रूधिर, मांस, मेद, हाड़, मजा और शुक्र ) तथा उप धातुऐं ( वात, पित्त, कफ, शिरा, स्नायु, चाम और जठराग्नि) अपने अपने स्थानमें स्थिरताको प्राप्त हों उसे स्थिर नामकर्म कहते हैं।
३७-अस्थिर- जिसके उदयसे पूर्वोक्त धातु उपधातुएं अपने अपने स्थानमें स्थिर न रहें उसे अस्थिर नामकर्म कहते हैं।
___३८-आदेय- जिसके उदयसे प्रभासहित शरीर हो उसे आदेय नामकर्म कहते हैं।
३९-अनादेय- जिसके उदयसे प्रभारहित शरीर हो उसे अनादेय नामकर्म कहते हैं।
1. आहारवर्गणा भाषावर्गणा और मनोवर्गणाके परमाणुओंको शरीर इन्द्रियादि रूप
परिणत करनेवाली शक्तिकी पूर्णताको पर्याप्ति कहते है । इसके छह भेद है-, १ - आहार पर्याप्ति, २-शरीर पर्याप्ति, ३-इन्द्रिय पर्याप्ति, ४-श्वासोच्छवास पर्याप्ति, ५-भाषा पर्याप्ति और ६ मन: पर्याप्ति । इनमें से एकेन्द्रिय जीवके भाषा और मनके बिना ४, असैनी पंचेन्द्रियके मनके बिना ५ और सैनी जीवके ६ पर्याप्तियाँ होती
है। जिस जीवकी शरीर पर्याप्ति पूर्ण हो जाती है वह पर्याप्तक कहा जाता है। 2. जिस जीवको पर्याप्ति पूर्ण नहीं होती उसे अपर्याप्तक कहते है। अपर्याप्तकके दो
भेद है, १-निवृत्यपर्याप्तक और २-लब्ध्यपर्याप्तक। जिस जीवकी शरीर पर्याप्ति अभी पूर्ण तो न हुई हो किन्तु नियमसे पूर्ण होने वाली हो उसे निर्वृत्यपर्याप्तक कहते है। जिस जीवकी एक भी पर्याप्ति पूर्ण न हुई हो और न होनेवाली हो उसे लब्ध्यपर्याप्तक कहते है।
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