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________________ ११६] माक्षशास्त्र सटीक माध्यस्थ्य- जो जीव तत्वार्थश्रद्धानसे रहित हैं तथा हितका उपदेश देनेसे उलटे चिढ़ते हैं उनमें राग द्वेषका अभाव होना सो माध्यस्थ्य भावना है ॥११॥ संसार और शरीरके स्वभावका विचारजगत्कायस्वभावौ वा संवेगवैराग्यार्थम्॥१२॥ अर्थ- संवेग(संसारके भय )और वैराग्य( राग द्वेषके अभाव ) के लिये क्रमसे संसार और शरीरके स्वभावका चिन्तवन करे ॥१२॥ हिंसा पापका लक्षणप्रमत्तयोगात्प्राणव्यपरोपणं हिंसा ॥१३॥ ___अर्थ-प्रमादके' योगसे यथासंभव द्रव्य प्राणया भाव प्राणोंका वियोग करना सो हिंसा है। नोट १- जिस समय कोई व्रती जीव ईर्यासमितिसे गमन कर रहा हो, उस समय कोई क्षुद्र जीव अचानक उसके पैरके नीचे आकर दब जावे तो वह व्रती उस हिंसा पापका भागी नहीं होगा क्योंकि उसके प्रमाद नहीं हैं। मैत्रीभाव जगतमें मेरा, सब जीवों से नित्य रहे। दीन दुःखी जीवोंपर मेरे, उरमें करुणा स्रोत वहे ॥ दुर्जन क्रूर कुमार्ग रतोंपर, क्षोभ नहीं मुझको आवे। साम्यभाव रक्खू में उनपर, ऐसी परिणति हो जावे ।। गुणी जनोंको देख हृदयमें, मेरे प्रेम उमड़ आवे॥ ___ - जुगलकिशोर मुख्तार 2. पाँच इन्द्रिय, चार कषाय, चार विकथा (स्त्री० राज० राष्ट्र और भोजन० ) राग द्वेष और निंद्रा वे १५ प्रमाद है। 3. पाँच इन्द्रिय. तीन बल, आयु और श्वासोच्छवास ये १० द्रव्य प्राण है। 4. ज्ञान दर्शनको भाव प्राण कहते है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001795
Book TitleMokshshastra
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
AuthorPannalal Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, P000, P005, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size12 MB
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