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________________ ६२ ] मोक्षशास्त्र सटीक नोट- २३वें सूत्रमें भरत क्षेत्रका जो विस्तार बतलाया है उसमें और इसमें कोई भेद नहीं है। सिर्फ कथन करनेका प्रकार दूसरा है। यदि एक लाखके एकसौ नव्वे हिस्से किये जायें तो उनमें हरएकका प्रमाण 526 योजन होगा ॥ ३२॥ धातकी खण्डका वर्णन द्विर्धातकीखण्डे ॥३३॥ अर्थ- धातकीखण्डे' नामक दूसरे द्वीपमें क्षेत्र, कुलाचल मेरू, नदी आदि समस्त पदार्थोंकी रचना जम्बूद्वीपसे दूनी दूनी है ॥ ३३ ॥ पुष्कर द्वीपका वर्णन पुष्करार्द्धे च ॥ ३४ ॥ अर्थ- पुष्करार्द्ध द्वीपमें भी जम्बूद्वीपकी अपेक्षा सब रचना दूनी दूनी है। विशेष- पुष्करवर द्वीपका विस्तार १६ लाख योजन हैं, उसके ठीक बीच में चूड़ीके आकार मानुषोत्तर पर्वत पड़ा हुआ है, जिससे इस द्वीपके दो हिस्से हो गये हैं । पूर्वार्धमें सब रचना धातकीखण्डके समान है और जम्बूद्वीपसे दूनी दूनी हैं। इस द्वीपके उत्तरकुरू प्रांतमें एक पुष्कर ( कमल) है, उसके संयोगसे ही इसका नाम पुष्करवर द्वीप पड़ा है ॥ ३४॥ मनुष्य क्षेत्र प्राड्मानुषोत्तरान्मनुष्याः ॥ ३५ ॥ अर्थ- मानुषोत्तर पर्वतके पहले अर्थात् अढ़ाईद्वीपमें 2 ही मनुष्य 1. धातकीखण्ड द्वीप लवणसमुद्रको घेरे हुए है, इसका विस्तार ४ लाख योजन है। इसके उत्तरकुरु प्रांतमें धातकी (आंबला) का वृक्ष हैं, उसके संयोग से इसका नाम धातकीखण्ड पड़ा हैं। 2. जम्बूद्वीप, लवणसमुद्र धातकीखण्ड, कालोदधि और पुष्करार्द्ध इतना क्षेत्र अढ़ाई द्वीप कहलाता है। इसका विस्तार ४५ लाख योजन हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001795
Book TitleMokshshastra
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
AuthorPannalal Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, P000, P005, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size12 MB
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