SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 100
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तृतीय अध्याय हैरण्यवत आदि क्षेत्रों में आयुकी व्यवस्था तथोत्तराः ॥३०॥ अर्थ- उत्तरके क्षेत्रों में रहनेवाले मनुष्य भी हैमवत आदिके मनुष्यों के समान आयुवाले होते हैं। ___ भावार्थ- हैरण्यवत क्षेत्रकीरचना हैमवत क्षेत्रके समान, रम्यककी रचना हरिक्षेत्रके समान और उत्तरकुरू (विदेहक्षेत्रके अन्तर्गत स्थानविशेष) की रचना देवकुरूके समान है। इस प्रकार उत्तम, मध्यम और जघन्यरूप तीनों भोगभूमियोंके दो दो क्षेत्र हैं । जम्बूद्वीपमें छः भोगभूमियाँ और अढ़ाईद्वीपमें कुल ३० भोगभूमियाँ हैं ।। ३०॥ विदेहक्षेत्रमें आयुकी व्यवस्था विदेहेषु संख्येयकालाः ॥३१॥ अर्थ-विदेहक्षेत्रमें मनुष्य और तिर्यञ्च संख्यात वर्षकी आयुवाले होते हैं ॥३१॥ भरतक्षेत्रका अन्य प्रकारसे विस्तार भरतस्य विष्कम्भो जम्बूद्वीपस्य नवतिशतभागः ॥ ३२॥ अर्थ- भरतक्षेत्रका विस्तार जम्बूद्वीपके एकसौ नव्वेवां भाग है। 12. जिनमें सब तरहकी भोगोपभोगकी सामग्री कल्पवृक्षास प्राप्त होती है उन्हें भोगभूमि कहते हैं। 3. विदेहक्षेत्र में मनुष्यों की ऊँचाइ पांचसौ धनुप और आयु एक करोड़ वर्ष पूर्वको होती हैं। चौरासी लाख वर्षों का एक पूर्वाङ्ग होता है और चौरासी लाख । पवाङ्गोका एक पूर्व होता है । एक पूर्व में एक करोड़का गुणा करने पर एक करोड़ पूर्व होता है। . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001795
Book TitleMokshshastra
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
AuthorPannalal Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, P000, P005, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy