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________________ तृताय अध्याय [६३ होते हैं। मानुषोत्तर पर्वतके आगे ऋद्धिधारी मुनिश्वर तथा विद्याधर भी नहीं जा सकते ॥३५॥ मनुष्योंकेभेदआर्याम्लेच्छाश्च ॥३६॥ अर्थ- आर्य और म्लेच्छके भेदसे मनुष्य दो प्रकारके होते हैं। आर्य- जो अनेक गुणोंसे सम्पन्न हों तथा गुणी पुरूष जिनकी सेवा करें उन्हें आर्य कहते हैं। म्लेच्छ- जो आचार विचारसे भ्रष्ट हों तथा जिन्हें धर्मकर्म का कुछ विवेक न हो उन्हें म्लेच्छ कहते हैं ॥ ३६॥ कर्मभूमिका वर्णन भरतैरावतविदेहाः कर्मभूमयोऽन्यत्रदेवकुरूत्तरकुरूभ्यः ॥ ३७॥ अर्थ- पांच' मेरू सम्बन्धी ५ भरत, ५ ऐरावत और देवकुरूउत्तरकुरूको छोड़कर ५ विदेह, इस तरह अढ़ाईद्वीपमें कुल १५ कर्मभूमियां हैं। कर्मभूमि- जहाँपर असि, मसि, कृषि, वाणिज्य, विद्या और शिल्प इन छह कर्मों की प्रवृति हो उसे कर्म भूमि कहते हैं ॥ ३७॥ मनुष्योंकी उत्कृष्ट और जघन्य स्थितिनृस्थिती परावरे त्रिपल्योपमान्तर्मुहूर्ते॥३८॥ अर्थ- मनुष्योंकी उत्कृष्ट स्थिति तीन पल्य और जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्तकी है ।। ३८॥ 3. जम्बूद्वीपका १, धातकीखण्डके २ और पुष्कराद्धं के २ इस प्रकार कुछ ५ मेरु होते Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001795
Book TitleMokshshastra
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
AuthorPannalal Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, P000, P005, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size12 MB
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