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सूक्तरत्नावली / 75
अपि सत्सु कलावत्सु, पूज्यते पदमर्चिषाम् । नेन्दौ सत्यपि किं प्रात,-नमस्कुर्वन्ति भास्करम्? ||292।।
कलावान् पुरुष एवं सज्जन-पुरुष दोनों के होने पर सज्जन व्यक्तियों के पैर पूजे जाते है। प्रातः में सूर्य और चन्द्रमाँ दोनों के होने पर सूर्य को नमस्कार किया जाता है। सत्यामप्यन्यसामग्यां, न स्यात् कालं विना फलम् । आविर्भूयाद् घृते दुग्धात्, किं विना दिवसान्तरम्? 11293।।
सामग्री के उपलब्ध होने पर भी काल के बिना फल नहीं मिलता है। क्या दूध से घी दिन के अन्तर के बिना उपलब्ध होता है ?
कर्कशेष्वपि या तस्थौ, सतां वाक् सा च नाऽन्यथा। ये वर्णा ग्रावसूत्कीर्णा, भवेत्तेषां किमत्ययः? ||294||
कठोर लोगों में भी सज्जनों की वाणी स्थिर रहती है, वह अन्यथा नही होती है। पत्थरों में जो रंग फैले हुए हैं क्या उनका नाश होता है ? लघू नामपि बाहुल्यं, दोष्मतामप्यशर्मकृत् । दुःसहाः शकटोद्वाहे, धुर्याणां धूलयो न किम्? | 1295 ।।
छोटा होने पर भी दोषी व्यक्ति की अधिकता दुखकारी होती है। गाड़ी वहन करने पर बैलों को अधिक उड़ती हुई धूल क्या दुःसह्य नहीं लगती है ?
अन्तःसारे गतेऽप्युच्चैः, शुद्धात्मा मानमर्हति। हृतेऽपि नवनीते किं, न लोकैस्तक्रमादृतम् ?||296।।
उच्चता के भावों से भरे हुए अन्तस्थल वाला शुद्धात्मा सम्मान के योग्य होता है। अन्दर मक्खन के होने पर क्या लोक में छाछ को स्वीकार नहीं किया जाता है ?
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