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सूक्तरत्नावली / 69
अपि तुंगात्मनां संपद, बहिर्भूताऽभिभूतये । । रदार्थमेव द्विरदा, निहन्यन्ते वनेचरैः।। 261।।
बड़े लोगो की सम्पत्ति का प्रदर्शन उनकी पराजय के लिए होता है। हाथियों के दाँत बाहर होने पर ही वे हाथी भीलों द्वारा मारे जाते
वाग्मिनः किं प्रकुर्वन्ति, मिलिते मलिनात्मनि ?। श्यामले कम्बले वर्णे, रितरैः का प्रतिक्रिया।। 262।।
मलिन आत्मा के मिलने पर बुद्धिमान् व्यक्ति क्या प्रतिक्रिया करता है ? अर्थात् नहीं। काले कम्बल में अन्य वर्ण मिलने पर क्या उसमें प्रतिक्रिया होती है ? अर्थात् नहीं।
जन्मस्नेहः सतां स्वीय, हन्यते दुर्मुखैः क्षणात् । तन्दुलानां तुषैमैत्री, निरस्ता मुशलेन यत्।। 263 ।।
सज्जनों के स्नेह को कटुभाषी व्यक्ति क्षण में स्वयं ही नाश कर देता है। चावल और तुष की मैत्री मूसल के द्वारा नष्ट हो जाती है। मन्दा भवन्ति सालस्याः, कलावन्तस्तु सोद्यमाः । त्रिंशन्मासान् शनिरास्ते, राशौ चेन्दुर्दिनद्वयम् ।।264|| ___मूर्ख व्यक्ति आलसी होता है। तथा कलावान् व्यक्ति उद्यमी होता है। एक राशि में शनि तीस मास रहता है और चन्द्रमाँ दो दिन रहता है। कोमलानां कठोरान्तः,-पतितानाममंगलम् । धान्यानां यद् घरट्टान्त,-र्गतानां कियती स्थितिः? ||265।।
कठोर के भीतर पतित कोमल वस्तु का अमंगल होता है। घट्ट के अन्दर गये धान की स्थिति कितनी होती है ?
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