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70 / सूक्तरत्नावली
सन्तः स्युः संगताः सन्तः, श्रिये श्यामात्मनामपि। किं केशाः कलयामासुन शोमां संश्रिताः सुमैः ?11266।।
मलिन आत्माओं के बीच मे सन्त व्यक्ति शोभित होते हैं। क्या काले बालों में पुष्प शोभित नहीं होते हैं ? प्रायो न हित(निहत?) एव स्यात्, कठोरात्मा रसप्रदः । यद् भग्नमेव दत्ते द्राग, नालिकेरफलं जलम् ।।267 ।।
प्रायः उच्चात्मा आहत होने पर भी रस प्रदान करते हैं। नारियल तोड़ने पर भी शीघ्र जल प्रदान करता है। तादृग् भोक्तरि नोत्कर्षो, यादृग् भोग्ये प्रवर्तते। न वेषाडम्बरस्तादृक्, पुंसां यादृग् मृगीदृशाम् ।।268 ।।
जब तक भोक्ता भोग में प्रवृत्ति करता है तब तक उसका उत्कर्ष नहीं होता है। व्यक्ति जब तक स्त्री में मुग्ध बना रहता है तब तक उसे अपने वेश की महत्ता का ज्ञान नहीं होता है। यद्येषां निकट प्राय,-स्तत्तेषां वल्लभं भवेत्। स्तनान्तःस्थितपयसां, स्त्रीणामेव पयः प्रियम्।। 269 ||
प्रायः जो जिसके निकट होता है वह उसको प्रिय होता है। जैसे दूध स्त्रियों के स्तन में होने से प्रायः उनको प्रिय होता है।
न स्यात्तेजस्विनः शक्ति,-स्तादृग यादृक् कलावतः। तादृग् नांशोर्बले शुद्धं, दिनं यादृग् निशापतेः ।।27011
तेजस्वी की शक्ति वैसी नहीं होती है जैसी कलावान् की होती है। चन्द्रमाँ की किरणें जितनी उज्ज्वल होती है उतनी सूर्य की किरणें उज्ज्वल नहीं। महिमानमक्षाराणां, न वयं वक्तु मीश्महे । यत् कलिर्गालिदाने स्या,-दाशीर्वादे च सौहृदम्।।271 ।।
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