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________________ 68 / सूक्तरत्नावली अनर्थकारी होती है। हिरण की नाभि में रहने वाली कस्तूरी ही वास्तव में उसकी मृत्यु का कारण मानी जाती है। इह हेतु रनर्थाना,-मा स्तावे गुणज्ञता। गीतेषु रसिकैाधा,-दवापि मरणं मृगैः ।। 256 || अनवसर पर गुणज्ञता भी अनर्थ का कारण बन जाती है। जैसे गीतों में रसिक हिरण मरण को प्राप्त होते हैं। महिमा मूलतो याति, कुस्थानस्थितवस्तुनः। कस्तूरी तिलकं पङ्क-मेव पामर मूर्धनि।। 257 ।। कुस्थान में स्थित वस्तुओं की महिमा मूल से चली जाती हैं। पामरलोगों के सिर पर लगा केसर का तिलक भी कीचड़ के समान है। निर्गुणा गुणिभिः साकं, संगता यान्ति गौरवम् । न धान्यैर्मिलिता लोकै,-गुह्यन्ते किमु कर्कराः? ||258।। निर्गुण व्यक्ति भी गुणवानों के साथ गौरव को प्राप्त करते हैं। धान से मिले हुए (कंकड़) क्या लोगों द्वारा ग्रहण नहीं किये जाते हैं? . तेजस्वी ननु तेजस्वि,-संगे राजति नाऽन्यथा । यथा भाति मणिः स्वर्णे, न तथा त्रपुणि स्थितः ।।259 ।। तेजस्वी व्यक्ति निश्चित तेजस्वी व्यक्ति के साथ ही शोभायमान होता है अन्य के संग नही। मणि स्वर्ण के आभूषणों के बीच में ही शोभायमान होती है रॉगे (एक प्रकार की अमूल्य धातु) में स्थित होने पर नहीं। व्रजन्नपि जड: स्थान,-विनाशाय धुवं भवेत् । नेत्रयोनिपतन्नीरं, हानये किं न तत्त्विषाम्? ||26011 ___ स्थान से च्युत् होता हुआ जड़ भी निश्चित ही विनाश के लिए होता है। नेत्रों से गिरा पानी क्या कान्ति का नाश नहीं करता है ? उपमहासकारणार 00000000000000000000000000000000000005888poowww800000088888888888000000000000000000000986880000000 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001793
Book TitleSuktaratnavali
Original Sutra AuthorSensuri
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2008
Total Pages132
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size7 MB
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