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__ सूक्तरत्नावली / 67 भवेन्मान्यः कठोरोऽपि, मध्ये मधुरिमार्किकृतः । नालिकेरफले चक्र.- दरं कर्कशेऽपि के ? || 251।।
कठोर होने पर भी जिनके अन्दर मधुरता है वे लोग सम्मान के पात्र होते हैं। कर्कश होने पर भी नारियल के फल में अन्दर का मण्डल क्या आदर के योग्य नहीं होता है ? सिद्ध कार्ये जनेणूच्चै,-महानपि तृणायते । बध्यते मुकुट: स्तम्भे , विवाहानन्तरं न किम्? ||252।।
जन समुदाय में कार्य की सिद्धि होने पर महान् व्यक्ति भी तृण के समान माना जाता है। विवाह के सम्पन्न हो जाने पर क्या मुकुट स्तम्भ पर नहीं बांधा जाता है ? गुणस्तुल्यास्पदेऽपि स्या,-निर्मले न ह्यनिर्मले ।। यत्सर्पिः प्राप्यते लोकै,-र्गोरसे न च गोमये ।। 253 ||
वस्तु के स्थान की समानता होने पर भी गुण निर्मल स्थान में ही रहता है। अनिर्मल (गन्दा या अस्वच्छ) स्थान में नहीं मिलता है। संसार मे मनुष्यों को दूध में ही घी मिल सकता है गोबर में नहीं (जबकि ये दोनो गाय से प्राप्त होते है)
दृश्यन्ते बहवः स्वल्प,-सत्त्वा नो सत्त्वशालिनः । पदे पदे पर्यटन्ति, भषणा न मृगद्विषः ।। 254||
अल्पमात्रा मे सत्त्वशाली व्यक्ति विपुलता से दिखलाई पड़ते हैं सत्वसम्पन्न व्यक्ति नहीं। श्वान (कुत्ते) तो हर जगह मिले जाते हैं परन्तु सिंह बहुत ही विरलता से मिलते हैं। संपदप्यल्पसत्तवाना, स्यादवश्यमनर्थ कृत् । कस्तुरी ननु कस्तूरी,-मृगाणां मृत्युकारिणी।। 255 ।।
अल्पसत्त्वशाली (कम हिम्मतवाले) प्राणियों की सम्पत्ति भी
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