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44 / सूक्तरत्नावली
मधुर बोलने वाले व्यक्ति यहाँ-वहाँ कही भी चले जाए पूरे विश्व में सभी को प्रिय होते हैं। कोयल की आवाज नगर, गॉव, जंगल एवं उद्यान सभी जगह प्रिय लगती है।
सति स्वामिनि दासानां, तेजो भवति नाधिकम् । नि नि भानि जायन्ते,-ऽत्युदिते रजनीकरे।। 139 ||
. स्वामी के होने पर दासों का तेज अधिक नहीं होता है। चन्द्रमाँ के उदय होने पर तारों में चमक होने पर भी कान्ति रहित हो जाते हैं।
दैवमेव प्रपन्नानां, पुसामाशा फलेग हिः। अपिबन्दिर्भुवस्तोयं, चातकैस्तुतुषेऽम्बुदात्।। 140 ||
भाग्य के अनुसार चलने वाला पुरुष लाभ ग्रहण की आशा वैसे ही रखता है जैसे भूमि का पानी न पीने वाला चातक पक्षी बादल से संतोष पाता है। लभ्यते लघुता सदभिः, परपावमुपस्थितैः। सनक्षत्रा ग्रहाः सर्वे,-ऽस्तं गताः सूर्यपार्श्वगाः ।।14111
सज्जन लोगों के निकट उपस्थित होने से दूसरे व्यक्ति लघुता को प्राप्त करते है। सूर्य के निकट आने पर सभी ग्रह नक्षत्र अस्त हो जाते है। पदं पराभवानां स्यात्, पुमांस्तेजोभिरुज्झितः। पदप्रहारैर्न घ्नन्ति, किं निर्वाणं हुताशनम् ?|| 142||
___ तेज विहीन व्यक्ति पराभव (अपमान) को प्राप्त होता है। क्या निर्वाण प्राप्त अग्नि (बुझी हुई अग्नि) पाँव के प्रहारो से कुचली नही जाती ? अर्थात् उस पर लोग बे रोक टोक पाँव रखकर चले जाते हैं। दोषे तुल्याऽवकाशेऽपि, गुणी मान्यो न चेतरः। छिद्रे सत्यपि हारोऽस्थात् कुचयोन च नूपुरम्।।143 ।।
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